Tuesday, June 14, 2011

सुख-दुःख



मई २००० 
साधक के लिये यह जरूरी है कि वह अपने मन पर नजर रखे ऐसा न हो कि उसका मन ही उसके खिलाफ हो जाये. मन की एक विशेषता है कि वह एक साथ दो स्थितियों में नहीं रह सकता, जिस क्षण वह सुखी है दुखी नहीं है और जिस क्षण वह दुखी है सुखी नहीं है,  इस विशेषता का लाभ उठाते हुए यदि हम दुःख की स्थिति में एक क्षण के लिये भी ईश्वर की कृपा का आश्रय लेते हुए मुस्कुरा दें तो दुःख भाग जायेगा. मुस्कुराने को अपनी आदत बना लें तब तो कहना ही क्या. जहाँ ईश्वर प्रेम व ईश्वर स्मृति हो वह जीवन धीरे-धीरे निर्दोष होता चला जाता है.  

3 comments:

  1. यदि हम दुःख की स्थिति में एक क्षण के लिये भी ईश्वर की कृपा का आश्रय लेते हुए मुस्कुरा दें तो दुःख भाग जायेगा. मुस्कुराने को अपनी आदत बना लें तब तो कहना ही क्या.
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    क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?

    बाबा का अनशन टुटा !

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  2. बहुत सुंदर, क्या बात है।

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