Wednesday, September 25, 2013

खाली हुआ जो वही भरा

मार्च २००५ 
निर्मलता शांति को प्रकट करती है. आकाश यदि घनमालाओं से आवृत हो तो इतना विशाल प्रतीत नहीं होता, शुभ्र गगन अनंत शांति को प्रकट करता है. उसी तरह चिदाकाश भी जब वृत्तियों से रहित होता है तो निर्मलता को प्रकट करता है. सहज प्रेम भी उसी से फूटता है. भक्त फूल की तरह, नदी व सूर्य की तरह देना चाहता है, वह अपना आप खाली कर देना चाहता है, क्योंकि वह उसमें अनंत को भरना चाहता है, एक तरफ वह खाली होता जाता है और दूसरी तरफ भरता जाता है. पूर्ण मदा पूर्ण मिदं, पूर्णात पूर्ण मुदच्यत...अपने जीवन में जीता है. सत्य को अपने जीवन में घटते देखता है. शास्त्रों में जो लिखा है, वह अनुभूत सत्य है, जब भक्त के जीवन में वह घटित होता है तो शास्त्र के प्रति उसका प्रेम और बढ़ जाता है. ईश्वर की यह सृष्टि कितनी अद्भुत है.

6 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (26-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 128" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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  2. समर्पण का सुंदर भाव ....!!

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  3. ईश्वर की यह सृष्टि कितनी अद्भुत है.
    नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )

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  4. सशक्त भाषा में जीवन के सार को आपने बाखूब अभिव्यक्त किया है अनीता जी…

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  5. राजेन्द्र जी, अनुपमा जी, धीरेंद्र जी तथा अपर्णा जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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