tag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post1799064612285986499..comments2024-03-22T21:45:18.255-07:00Comments on डायरी के पन्नों से: देह बने देवालय जब Anitahttp://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-66312387769002900842017-03-09T02:24:09.993-08:002017-03-09T02:24:09.993-08:00मन विचारों, भावनाओं, कामनाओं, आकांक्षाओं का केंद्र...मन विचारों, भावनाओं, कामनाओं, आकांक्षाओं का केंद्र है. स्वाध्याय और ध्यान इसे सही दिशा देते हैं. मन यदि बहते जल सा प्रवाहमान रहता है तो ताजा रहता है. काम, क्रोध, लोभ मन को बांधते हैं तथा अंततः दैहिक व मनोरोगों के कारण होते हैं. भावमय देह हमारे आदर्शों पर आधारित होती है, यदि जीवन में हम किन्हीं मूल्यों को महत्व देते हैं, सहानुभति, सद्भावना और सेवा के भाव भीतर पल्लवित होने लगते हैं. <br /><br /> <br /><br />आपके पोस्ट पढ़कर मन सुखद शांति की राह में अग्रसर हो जाता है. Rahul...https://www.blogger.com/profile/11381636418176834327noreply@blogger.com