tag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post4399206520318846809..comments2024-03-22T21:45:18.255-07:00Comments on डायरी के पन्नों से: राधे राधे मन बोले Anitahttp://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-86630875072083232492013-05-16T00:33:49.696-07:002013-05-16T00:33:49.696-07:00वाह ... कितनी सूक्ष्मता से अंतर स्पष्ट किया है ......वाह ... कितनी सूक्ष्मता से अंतर स्पष्ट किया है ... कृष्ण से एक हो जाना ही अंत है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-37267421936970273172013-05-16T00:12:02.431-07:002013-05-16T00:12:02.431-07:00रमाकांत राहुल जी, मधु जी व कैलाश जी आप सभी का स्व...रमाकांत राहुल जी, मधु जी व कैलाश जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-34349259414952730112013-05-15T10:55:55.888-07:002013-05-15T10:55:55.888-07:00 द्वैत को मिटाकर एक्य स्थापित करना प्रेम की पराकाष... द्वैत को मिटाकर एक्य स्थापित करना प्रेम की पराकाष्ठा है.<br />....बिल्कुल सच कहा है...आभार Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-46545012665651442692013-05-15T07:39:22.407-07:002013-05-15T07:39:22.407-07:00sundar bahvsundar bahvAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/14500351687854454625noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-79006354166472056272013-05-15T05:41:35.891-07:002013-05-15T05:41:35.891-07:00कृष्ण से वह जब पृथक रही ही नहीं तो कैसा विरह और कै...कृष्ण से वह जब पृथक रही ही नहीं तो कैसा विरह और कैसी पीड़ा. विसर्जन करना बहुत कठिन है, अपने अहम् का विसर्जन, शक्ति, समय, सेवा का विसर्जन, प्रिय के साथ एकाकार हो जाना, राहुल https://www.blogger.com/profile/10291047869113788114noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8731113679380035272.post-21170872669150127342013-05-15T03:20:37.764-07:002013-05-15T03:20:37.764-07:00 राधा के प्रेम में चीत्कार नहीं है वह स्वयं को मिट... राधा के प्रेम में चीत्कार नहीं है वह स्वयं को मिटा कर कृष्णरूप ही हो गयी है. कृष्ण से वह जब पृथक रही ही नहीं तो कैसा विरह और कैसी पीड़ा. विसर्जन करना बहुत कठिन है,<br /><br />यही भाव राधा की कृष्ण के प्रति आसक्ति का है आपने इसे गरिमा दी <br />राधे राधे <br /><br />Ramakant Singhhttps://www.blogger.com/profile/06645825622839882435noreply@blogger.com