Friday, February 23, 2018

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन


२४ फरवरी २०१८ 
भगवद् गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं यदि कोई मात्र स्वयं को किसी कर्म का कर्ता मानता है तो यह उसका अज्ञान है. किसी भी कार्य को सम्पन्न होने के लिए अनुकूल संयोग जब तक उपस्थित न हों तब तक वह कार्य नहीं हो सकता. एक बीज को उगने के लिए मिट्टी, हवा, पानी और हवा चाहिए, पर माली यदि कहे यह पौधा उसने उगाया है तो इस बात में कितनी सच्चाई होगी. इसीलिए कर्म के बाद फल हमारे हाथ में हो नहीं सकता. फल प्राप्ति भी किसी न किसी कर्म के रूप में सामने आएगी, जिसके लिए पुनः अनुकूल संयोग होने चाहिए. कर्तापन का बोझ यदि किसी के सिर पर न रहे तो वह कितना हल्का महसूस करेगा. कर्ता होते ही हम भोक्ता भी हो जाते हैं. यदि कोई विद्यार्थी वर्ष भर मेहनत करता है किन्तु किसी कारण वश परीक्षा में फेल हो जाता है, तो उसे स्वयं को दोषी मानने की जरा भी आवश्यकता नहीं है. ‘नेकी कर कुएं में डाल’ कहावत के पीछे भी यही भाव है, कि अच्छा कार्य भी उचित संयोग बैठने से ही सम्भव हुआ. किन्तु जानबूझ कर गलत कार्य करके हम इस उपाय द्वारा स्वयं को कर्ताभाव से मुक्त नहीं कर सकते, उस समय हमें फल के लिए तैयार रहना होगा.

5 comments:

  1. कृष्ण यकीनन महान मनोवैज्ञानिक रहें हैं।
    कितनी सार्थक बातें कही उन्होंने।

    आपने यह बात हम तक पहुंचाई इसका आभार

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    1. स्वागत व आभार रोहित जी !

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  2. हर कर्म का फल उसी अनुरूप है ये जितना जल्दी ज्ञान हो उतना ही अच्छा ...

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    1. सही कहा है आपने दिगम्बर जी !

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  3. स्वागत व आभार कविता जी !

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