Friday, January 31, 2020

मिलजुल रहना जब सीखेंगे


जब चारों ओर अफरातफरी मची हो, कोई किसी की बात सुनने को ही तैयार न हो.  समाज में भय का वातावरण बनाया जा रहा हो और भीड़ को बहकाया जा रहा हो, भीड़ जो भेड़चाल चलती है, जो विरोध करते-करते  कभी हिंसक भी हो जाती है. समाज जब ऐसे दौर से गुजर रहा हो तो सही बात पीछे रह जाती है. यदि सभी अपना-अपना निर्धारित काम सही ढंग से करें,   तो समाज को आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है. भारत भूमि पर रहने वाला हर व्यक्ति भारत के विकास के लिए उत्तरदायी है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक किसी भी वर्ग, वर्ण, आश्रम, समुदाय या प्रदेश का रहने वाला व्यक्ति समान है, उसके अधिकार समान हैं और कर्तव्य भी. आज सभी अधिकारों की बात करते हैं पर जिसे जहाँ जो कार्य करना चाहिए, उसकी बात नहीं करता. विश्व विद्यालय अध्ययन व अध्यापन करने-कराने की जगह आंदोलन का केंद्र न बनें. बगीचे टहलने व खेलने के स्थान पर संघर्ष के लिए केंद्र न बनें. भारत जिस बात के लिए विश्व प्रसिद्ध है उस सौहार्द, आत्मीयता और ज्ञान को कोई  भुलाए नहीं, जिसके बिना आपसी मतभेद को दूर करना बहुत कठिन है.

5 comments:

  1. सहमत,
    विद्या मंदिरों को तो कम से कम अपनी राजनीति का अखाड़ा न बनाएँ ,हमारे राष्ट्र के तथाकथित कर्णधार।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(0२-०२-२०२०) को "बसंत के दरख्त "(चर्चा अंक - ३५९९) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    -अनीता सैनी

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  3. आदरणीया अनिता जी,
    हमारे देश मे जहां एक ओर समानता की मांग में लिप्त संघर्षरत समाज हैं वहीं दूसरी ओर सियासतदार भी दूसरा समाज है जो राज करता है और फुट डालता है। ऐसे ही समाजों को देखकर पाश ने एक poem में लिखा था कि
    "जो राष्ट्रीय एकता की बात करता है
    जी करता है मैं उनकी टोपी हवा में उछाल दूं।"
    उम्दा लेखन रहता है आपका।

    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र 

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    1. उम्दा प्रतिक्रिया का स्वागत व आभार रोहितास जी !

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  4. बहुत बहुत आभार !

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