Friday, August 28, 2020

मध्य में टिकना जो भी जाने

 ज्ञानीजन कहते हैं, सदा वर्तमान में रहो. अतीत जा चुका और भविष्य अभी आया नहीं है, फिर क्यों अपनी ऊर्जा को  उन बातों को याद करने में गंवाए जो हमारे वर्तमान जीवन को सुंदर बनाने में जरा भी काम नहीं आ सकतीं. अतीत से हमें सीख अवश्य लेनी है और वह हमारा मन उसी वक्त ग्रहण कर लेता है जब वह घटना विशेष घटी थी. इस समय का एक-एक पल हमारे भविष्य को गढ़ने वाला है और यही हमारे हाथ में है. विपासना ध्यान में जब हम श्वास को देखते हैं तो जाती हुई श्वास अतीत बन गयी, अगली अभी आयी नहीं है उस मध्य काल में यही कोई पल भर के लिए भी टिक जाता है तो उसकी बाहर जाने वाली श्वास सहज और शांत हो जाती है. ऐसे ही आज का दिन बीत गया, मध्य में रात्रि है यदि वह पूर्ण विश्राम देती है तो अगले दिन हम प्रफ्फुलित रह सकते हैं. इसी तरह वार्तालाप में यदि एक व्यक्ति ने अपनी बात कह दी और हम पल भर के लिए रुक गए तो उसका जवाब सही और स्थिरता के साथ दे पाएंगे. यदि हम उसकी बात में ही अटक गए या पहले ही अपना जवाब तय कर लिया तो हमारा उत्तर सन्तुलित नहीं हो सकता. भगवान बुद्ध का मध्यम मार्ग भी यही सिखाता है कि हमें मध्य में ठहरने की कला सीखनी है. 


5 comments:

  1. सार्थक रचना! गौतम बुद्ध का विपसना ध्यान के बारे में भी इशारा। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

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  2. विपासना में कहा जाता है की सांस पर ध्यान दें ताकि वर्तमान में रहें. आपकी ये बात स्पष्ट नहीं हुई की गई साँस और आने वाली सांस के मध्य में रहें? मुझे ऐसा लगता है की बुद्ध ने कहा की दो अतियों से बचें - शरीर को बहुत कष्ट देने से और बहुत विलासिता में रहने से. मध्य मार्ग इनके बीच है मेरे विचार में दो सांसों के बीच के लिए तो नहीं कहा गया ?

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  3. विपासना ध्यान यदि आपने कभी किया है तो ही इस बात का अनुभव हो सकता है. आपकी दूसरी बात सही है, आभार !

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