Friday, February 8, 2013

अगम प्रेम का पथ है यह


‘स्व’ से ‘पर’ की ओर जाने का नाम ही संसार है और ‘पर’ से ‘स्व’ की ओर जाने का नाम ही अध्यात्म है. यह संसार पाया नहीं जा सकता और परमात्मा को खोया नहीं जा सकता. जिसको पाने का कोई उपाय नहीं उसे हम पाया हुआ समझते हैं और जिसे खोने का कोई उपाय नहीं उसे जीवन भर पाने का प्रयास करते है. संसारी कुछ बनना चाहता है, पर संत, भक्त मिटना चाहता है. प्रेम का पथ अगम है, इसमें प्रियतम तो याद रहता है पर खुद की याद नहीं रहती.

3 comments:

  1. सुंदत ...सार्थक ...अभिव्यक्ति ...

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  2. प्रेम का पथ अगम है, इसमें प्रियतम तो याद रहता है पर खुद की याद नहीं रहती.

    सार्थक अभिव्यक्ति

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  3. अनुपमा जी व रमाकांत जी, आपका स्वागत व आभार !

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