Friday, December 30, 2022

नए साल की शुभकामना

नए वर्ष को जब तक हम नया बना रहने देंगे, हमारा उत्साह बना रहेगा। सभी चाहते हैं कि नए वर्ष में मन में नया उत्साह हो, नए इरादे हों, नए ढंग से जीने की आस बनी रहे। इसके लिए नए को अपनाने में गुरेज़ न करें। यहाँ तक कि सोचने का तरीक़ा भी नया हो, चीजों को देखने का नज़रिया भी नया हो, भोजन में भी कुछ नवीनता हो। अच्छे स्वास्थ्य  के लिए नए व्यायाम सीखें और ध्यान की नई विधियाँ अपनाएँ। जीवन के हर क्षेत्र में कुछ न कुछ नवीनता का अंश भरें तो हम स्वयं को बदल सकते हैं। भूलें भी करें तो नयी, श्री श्री कहते हैं वही-वही भूलें हमें एक चक्र में घुमाती हैं, नयी भूलें हमें चक्र से बाहर ले जाने का मार्ग दे सकती हैं। २०२३ के अंतिम दिन तक इस आने वाले वर्ष को नया जानना है। यह नया है ही, २०२४ के आने से पूर्व तक यह नया है, इसके बाद यह पुराना होगा। अक्सर हम फ़रवरी के आते-आते ही साल को पुराना जानकर सब वायदे और नियम भुला देते हैं जो पहली जनवरी को खुद से करते हैं; किंतु इस बार वर्ष का हर दिन, हर सप्ताह और हर माह अंत तक नया बना रहे। 

Thursday, December 29, 2022

शरण में आए हैं हम तुम्हारी

शरणागति का अर्थ है जीवन में आने वाली हर परिस्थिति को समता से स्वीकार करने की क्षमता को विकसित करना। अक्सर हम सोचते हैं कोई ईश्वर की शरण में है तो अब उसके जीवन में कोई विकट परिस्थिति आएगी ही नहीं। जीवन विपरीत से बना है, यहाँ दो साथ-साथ चलते हैं। जो आज स्वस्थ है, वही कल रोगी हो सकता है। जो आज धनी है, वह कल धनहीन भी हो सकता है। परमात्मा की शरण का अर्थ है कोई इन दो के पार जाकर रहना सीख गया है, वह हर स्थिति को साक्षी भाव से स्वीकार कर सकता है। बाहर कुछ भी घटता हो गहराई में उसका मन समता में रहना सीख गया है। ऐसे मन में यह विश्वास सदा बना रहता है कि ईश्वर सदा उसके साथ है और सब जानता है। 


Tuesday, December 27, 2022

दो का भेद जानता है जो

जीवन दो से बना है। यहाँ दिन के साथ रात, सुख के साथ दुःख भी है। देह से जो सुख लिया है, उसकी क़ीमत दुःख से चुकानी पड़ती है। आँखों ने सुंदर दृश्य दिखाए, एक वक्त आता है जब नयन धुंधला जाते हैं। नासिका ने हज़ारों सुगंधियों की खबर दी है, किसी वक्त वह खबर देने से मना कर सकती है, बंद-बंद रहती है। स्वाद चखे होंगे अनेक जिह्वा से, पर कभी कोई स्वाद ही नहीं आता या बिगड़ ही जाता है ज़ायक़ा मुख का। घुटनों ने भी जवाब देना है एक दिन, दाँतों ने भी गिर कर साथ छोड़ना  है। कर्ण ऊँचा सुनने लगते हैं। दिल है कि रह-रहकर धड़कता है। पूछता है, यह क्या हो रहा है ? किंतु आत्मा तब भी साक्षी बनी देखती है। वह कोई प्रतिक्रिया नहीं करती, उसे एक उपकरण मिला था, जो अब पुराना हो रहा है, जिसमें टूट-फूट हो रही है, वह रहेगी जब तक सम्भव होगा, फिर त्याग जाएगी मुक्त पंछी की तरह ! देह के  माध्यम से मन व्यक्त होता है, स्थूल का आश्रय लिए बिना सूक्ष्म व्यक्त नहीं हो सकता। बिजली के बल्ब के बिना प्रकाश कैसे होगा, तार में लाख बिजली दौड़ती रहे। वृक्ष हुए बिना फूल कैसे खिलेंगे, लाख जीवन शक्ति छिपी रहे बीज में। हाथों के बिना कैसे ग्रंथ लिखे जाएँगे, विद्वान मन में कितना विचार मंथन करते रहें। सूक्ष्म की अभिव्यक्ति स्थूल से संभव है। विचार स्थूल है, भाव सूक्ष्म; दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं।  सूर्य की धूप बाहर बिखरी हो पर कमरे के भीतर गर्मी के लिए हीटर चाहिए। परमात्मा हर जगह मौजूद है पर उसकी कृपा को अनुभव करने के लिए मन चाहिए। आत्मा मन से भी सूक्ष्म है, उसके गुण मन में प्रकट होते हैं और  बाहर तरंगों के रूप में शांति का प्रसाद मिलता है। जीवन दोनों का समन्वय है। 


Friday, December 23, 2022

समता की जो करे साधना

इस परिवर्तनशील जगत में यदि कोई जन सुखपूर्वक जी सकते हैं तो उन्होंने जीने की कला सीख ली है। कुछ आवश्यक सूत्र हृदयंगम कर लिए हैं। अस्तित्त्व को प्रेम किए बिना हम जगत के साथ सामंजस्य नहीं बना सकते। परमात्मा ने इस सृष्टि की रचना जिस तत्व से की है वह प्रेम है। उसे हर परमाणु में प्रकट करना और महसूस करना ही योग है।कण-कण में वही समाया है, का अर्थ है कि परमात्मा की उस करुणामयी शक्ति ने ही स्वयं को जगत रूप से प्रकट किया है। हमें पहले अपने हृदय में उस तत्व को खोजना है और फिर उसे विराट के साथ जोड़ना है। सृष्टि और सृष्टि कर्ता तब दो नहीं रह जाते और संत उसी में आनंदपूर्वक निवास करते हैं। कृष्ण की मुस्कान जीवन की कोई परिस्थिति छीन नहीं सकती। अपार कष्टों में भी राम यह भीतर जानते हैं कि लीला है, और उनके चेहरे का भाव राज्य पाने और राज्य त्यागने में स्थिर रहता है। इस समता को पाने की साधना ही योग है।   


Thursday, December 22, 2022

एक तलाश सभी के भीतर

जाने-अनजाने हम सभी अपनी नियति की ओर बढ़ रहे हैं । नियति जो हमने खुद गढ़ी है; हमारे अपने कर्मों द्वारा, कर्म जो हमरी कामनाओं का परिणाम हैं। इस देह, मन, बुद्धि  में जो शक्ति निहित है उसे जगाकर आत्मस्वरूप  शिव से मिलना एक साधक  की  नियति है। हमारे भीतर जो ईश्वरीय चेतना है वह अपने मूल स्वरूप से जुड़ना चाहती है। प्रेम की तलाश इसी के कारण है, आनंद, शांति व पूर्णता की तलाश इसी के कारण है। हर व्यक्ति कुछ न कुछ पाना चाहता है ताकि वह पूर्ण हो सके, यह अधूरापन उसे सालता है। यह तलाश तब तक पूरी नहीं होती जब तक आत्मशक्ति अनंत से एकाकार न हो सके। दूसरे अंशों में अनंत का एक अंश होने के कारण हर आत्मा स्वयं की मुक्तता का अनुभव करना चाहती है, जो अभी देह व मन की सीमाओं में रहने के कारण बँधा हुआ महसूस करती है। यदि वह अपने निर्णय पूर्व संस्कारों के कारण न ले, आदतों के कारण न ले, विकारों के कारण न ले, मित्रों, परिवार व समाज के दबाव में न ले, बल्कि अपने कल्याण की भावना से स्वयं के लिए हितकर मार्ग पर चलने का साहस जुटा पाए तो वह अपने लक्ष्य को पा सकती है। अनंतता उसका लक्ष्य है और सीमा उसकी वर्तमान अवस्था, इसे तोड़कर वह अपने पूर्ण सामर्थ्य का अनुभव कर सकती है। 


Tuesday, December 20, 2022

जीवन एक अनंत यात्रा

यदि जीवन में यम और नियम का पालन होता हो अर्थात सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्म में विचरण करने की भावना मन में सदा जागृत रहती हो तथा तप, संतोष, शौच, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान में रुचि हो, तब हम योग के अनुशासन का पालन करने के योग्य होते हैं। अन्नमय कोश की साधना योगासन है। प्राणमय कोश की साधना प्राणायाम है। धारणा मनोमय कोश की व ध्यान विज्ञानमय कोश में हमें स्थित कर देता है। समाधि का अर्थ है साधक आनन्दमय कोश में स्थित है। समाधि से लौटा हुआ मन केंद्रित होता है, वह जगत के माया जाल में  व्यर्थ नहीं उलझता। वह अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण समर्पित रहता है। जीवन में अनुशासन से जो यात्रा आरम्भ होती है वह जगत के साथ एकत्व पर फलित होती है। यह यात्रा कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं होती क्योंकि परमात्मा अनंत है। 


Monday, December 19, 2022

देवों का सहयोग मिले जब

परमात्मा सर्वशक्तिमान है, वह सर्जक है, नर्तक है, वह दृष्टा है, स्वप्नदर्शी है। वह अनंत है और अनंत हैं उसके उसके आयाम। उसके हर गुण, हर क्षमता को एक देवी या देवता का रूप दे दिया गया है। इसलिए देवी-देवता अनेक हैं। मानव का हृदय जब स्वार्थ से ऊपर उठ जाता है,  उसमें उन देवताओं का वास हो जाता है। महापुरुषों में दैवीय गुण होते हैं और असुरों में आसुरी शक्तियों का वास बन जाता है। हमें यदि प्रेम, शांति, आनंद जैसे गुणों को अपने भीतर धारण करना है तो इनके देवताओं का वरण करना होगा। उनका स्मरण मात्र करना होगा; तथा अपनी सच्ची आकांक्षा के अनुरूप हम पाएँगे कि वे हमारे आस-पास ही विचरते हैं। पुराणों में लिखी देवों की कहानियाँ प्रकृति के अटल, सत्य नियमों का निरूपण हैं। अतीत काल से मानव व देव मिलजुल कर इस धरती पर आते रहे हैं। दोनों ही परमात्मा की कृति हैं। जब मानव ने विज्ञान को ही सब कुछ मान लिया , वह भूल ही गया कि विज्ञान के नियमों के पीछे भी वही शक्ति है। अब समय आ गया है कि विज्ञान और अध्यात्म एक ही मार्ग पर चलें और यह धरती अपने वैभव को प्राप्त हो।