Friday, September 28, 2018

शक्ति ही शिव तक ले जाये


२९ सितम्बर २०१८ 
दिन उगता है और समाप्त हो जाता है, रात्रि के आँचल में प्रकृति शांत होकर सो जाती है. हम भी दिन भर के कार्यों के बाद देह और मस्तिष्क को विश्राम देने के लिए सो जाते हैं. नींद में हम कहाँ होते हैं, किसी को नहीं पता, गहरी निद्रा में न किसी को अपने होने का भान रहता है, न अपने ज्ञान और ऐश्वर्य का, उस समय राजा और रंक मानो एक हो जाते हैं. नींद में ही स्वप्न काल भी होता है, कभी अतीत के कभी भविष्य के और कभी अपने वर्तमान जीवन से जुड़े विचार स्वप्न बनकर हमें दिखाई पड़ते हैं. जागृत अवस्था में जो मन में संकल्प उठते हुए देखता है, स्वप्न अवस्था में जो दृश्य देखता है, निद्रा में जो सुख का अनुभव करता है, वह द्रष्टा स्वयं अनदेखा ही रह जाता है. संत कहते हैं, इतने बड़े मायाजाल का एक ही प्रयोजन है उस मायापति से नाता जोड़ लेना जो इस द्रष्टा को चेतना प्रदान करता है. नवरात्रि का उत्सव इसी संदेश को लेकर बार-बार आता है, शक्ति की उपासना करके हम शिव तक पहुँचें.

Wednesday, September 26, 2018

शुभ कर्मों से सजा हो जीवन


२७ सितम्बर २०१८ 
भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं, कर्म पर हमारा अधिकार है, फल पर नहीं. इसका एक अर्थ यह भी है कि हमें सदा कर्मशील रहना है. शास्त्रों में नियत कर्म, नियमित कर्म, निमित्त कर्म आदि की चर्चा की गयी है. नियत कर्म के अनुसार प्रत्येक मानव का पहला कर्त्तव्य है स्वयं के तन की समुचित देखभाल. उसकी शुद्धि, उचित आहार व व्यायाम के द्वारा उसे स्वस्थ रखना. दूसरा है आजीविका के लिए कर्म करना, जो बच्चे अथवा वृद्ध हैं और जो गृहणियाँ हैं, क्रमशः उनका कर्त्तव्य है शिक्षा प्राप्त करना, समाज को सही मार्गदर्शन देना और घर चलाना. नियमित कर्म के अनुसार सभी का कर्त्तव्य है परमेश्वर के प्रति धन्यवाद और कृतज्ञता का ज्ञापन करना. इसमें प्रार्थना, ध्यान, जप, योग, साधना व्रत, उपवास, उत्सव आदि सभी उपाय समयानुसार समाहित हो जाते हैं. इन्हें त्रिकाल संध्या के रूप में हमारे शास्त्रों में नियमित करने का विधान है. हम देह रूप से परमात्मा से पृथक हैं पर आत्मा रूप से उससे अभिन्न हैं, इस भाव का अनुभव किये बिना प्रार्थना पूर्ण नहीं होती. निमित्त कर्मों में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के संस्कार तथा श्राद्ध आदि आ जाते हैं. यदि हमारा जीवन इन शुभ कर्मों से भरा रहे तो व्यर्थ के कर्म अपना आप ही विदा ले लेंगे और दुखरूप फल से हम मुक्त हो जायेंगे. धर्म के द्वारा अर्थ और कामनाओं की सिद्धि में ही मोक्ष का अनुभव छिपा है.

Tuesday, September 25, 2018

जीवन जब उत्सव बन जाये


२५ सितम्बर २०१८ 
मानव मन में सदा ही आगे बढ़ने की प्रवृत्ति काम करती रहती है. हम कभी संतुष्ट होकर नहीं बैठ सकते, जिसके पास साईकिल है वह कार चाहता है और उसके लिए श्रम करता है, जिसके पास कार है वह हवाई जहाज में उड़ना चाहता है. जीवन की ऊर्जा हमें आगे ही आगे धकेलती हुई सी लगती है. कुछ न कुछ नया, मौलिक करने की धुन लोगों को हैरतंगेज कारनामे करने में भी लगा देती है. इसका अर्थ हुआ हम अपने जीवन में पहले समस्या का चुनाव करते हैं और फिर उसका हल ढूँढ़ते हैं. लगता है सारा जीवन एक समस्या से दूसरी समस्या तक जाने व उसको हल करने का ही नाम है. प्रकृति में इसका विपरीत होता है, वहाँ पहले हल दिया जाता है, फिर समस्या प्रकट होती है. हर प्रदेश में वातावरण के अनुकूल भोज्य पदार्थों का मिलना व जड़ी-बूटियों का पाया जाना इसका प्रमाण है. हर ऋतु के अनुसार फलों व सब्जियों का उगना और मौसम के अनुसार वातावरण में कीट-पतंगों का पैदा होना आदि. जीवन जीने का एक दूसरा ढंग भी हो सकता है, वह है समस्या को समस्या न मानकर एक खेल मानना, तब जीवन एक क्रीड़ा से दूसरी क्रीड़ा में जाने का नाम हो सकता है. सम्भवतः इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इतने सारे उत्सवों को मनाने की प्रथा शुरू की थी. इसके लिए सबसे प्रथम आवश्यकता है आपसी कलहपूर्ण प्रतिस्पर्धा न रहे, अहंकार को पोषण देने वाली प्रतियोगिताओं के नाम पर आपसी द्वेष को बढ़ावा न मिले. हरेक को अपनी सहज प्रतिभा को दिखाने का अवसर मिले, किसी के भी साथ किसी भी तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार न किया जाये. इसी सह- अस्तित्त्व को शास्त्रों में यज्ञ के प्रतीक से बताया गया है.

Monday, September 24, 2018

श्रद्धा से जो श्राद्ध करे


२४ सितम्बर २०१८ 
जीवन रहस्यपूर्ण है, हम कितना भी जान लें, अनंत जाने बिना ही रह जाता है. ऐसा मान लेने में ही शांति का अनुभव होता है कि हम कुछ भी नहीं जानते. अभी पितृ पक्ष आने वाला है. हमारे पूर्वज जो अब देह में नहीं हैं, उन की याद में हम श्राद्ध करते हैं. अन्नमय कोष तो मृत्यु के क्षण में ही नष्ट होने लगता है, उसे जला दिया जाता है. सूक्ष्म शरीर जो प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय कोष हैं, वे नष्ट नहीं होते. प्राणमय शरीर ऊर्जा से बना है. मनोमय विचारों से बना है. विज्ञानमय कोष ज्यादा सूक्ष्म है, वह हमें परमात्मा से जोड़ता है. वह मृत्यु के बाद भी बना रहता है और परलोक या पितृ लोक में गमन कर जाता है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज इस भूलोक पर आते हैं और यदि हम उनकी स्मृति में दान, श्राद्ध व तर्पण करते हैं तो हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. विचारपूर्ण दृष्टि से देखें तो यह एक सुंदर प्रथा है, पर पंडितों और पुरोहितों ने इसे लोभ के कारण ऐसा बना दिया है कि आज की पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है. हमारे पूर्वजों को वर्तमान पीढ़ी से जोड़े रखने के लिए, अपनी परंपराओं को जीवित रखने के लिए, पशु-पक्षियों और समाज के दीन-हीन जनों को दान के रूप में कुछ सहायता देने के लिए यह प्रथा हमारे लिए अत्यंत लाभदायक है. जिनके कारण हम इस समय हैं अपने उन तीन पीढ़ी तक के पूर्वजों को प्रेम से स्मरण करते हुए उनके लिए कुछ करने की भावना के साथ जब हम श्राद्ध करते हैं तो उनका ही नहीं देवताओं का आशीर्वाद भी हमें सहज ही प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है.

Friday, September 21, 2018

तू प्यार का सागर है


२२ सितम्बर २०१८ 
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, तुम मेरे प्रिय हो, तुम निष्पाप हो, इसलिए मैं तुमसे यह ज्ञान कहूँगा. हर साधक अर्जुन है और परमात्मा की नजरों में प्रिय भी. कैसी अद्भुत है उसकी शक्ति, वह एक होकर हजारों आत्माओं को अपना निस्वार्थ प्रेम दे सकता है. हम अपने निकटस्थ दो-चार को भी सहज प्रेम देने में कृपणता का अनुभव करते हैं. परमात्मा की दृष्टि में हम सभी आत्माएं हैं, जिन्हें वह अपने समान ही देखना चाहता है, शुद्ध और मुक्त...वह उन सभी को जो उससे प्रेम करते हैं और मार्गदर्शन चाहते हैं, सदा सन्मार्ग दिखाता है. अंतर्प्रेरणा के रूप में वह साधक को सचेत करता है. प्रेम करना उसका स्वभाव है, बल्कि वह प्रेम स्वरूप ही है, उसकी ओर एक कदम रखते ही शांति की लहरों का मधुर कलकल सुनाई देने लगता है. इस जगत में कुछ भी स्थिर नहीं है, और उसकी सत्ता में कुछ भी अस्थिर नहीं है, वह अचल, अडोल और अच्युत है. उसे हम आज पुकारें, कल पुकारें, एक वर्ष बाद पुकारें या एक युग बाद, वह सदा उसी तरह स्वागत करता हुआ मिलेगा. इसीलिए वह मीरा का भी उतना है जितना राधा का.

Thursday, September 20, 2018

भक्ति करे कोई सूरमा


 २२ सितम्बर २०१८ 
भारत का सर्वपूज्य ग्रन्थ भगवद् गीता कृष्ण और अर्जुन के संवाद पर आधारित है, जो युदद्ध क्षेत्र में घटा था. इसके पीछे एक रहस्य है. वास्तव में एक साधक का जीवन योद्धा की भांति होता है. एक योद्धा अनुशासित, वीर, निर्भय और स्वालम्बी होता है, युद्ध करते समय उसे तत्काल निर्णय लेने होते हैं. उसे प्रतिपल सजग रहना होता है, वह अपने शत्रुओं को पहचानता है और उसे अपनी क्षमता का भी भान होता है. युद्ध क्षेत्र में उसकी छोटी सी असावधानी भारी पड़ सकती है. एक साधक को भी जीवन के कर्मक्षेत्र में सजग रहकर आलस्य, प्रमाद, पंच विकार अदि शत्रुओं से युद्ध लड़ना होता है. जो वस्तुएं उसके मार्ग में बाधक हैं, उनका प्रबल विरोध करके ही वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है. हम सभी किसी न किसी रूप में ईश्वर की भक्ति, आराधना, योग, ध्यान आदि करते हैं, किन्तु अंतिम लक्ष्य हमसे दूर ही बना रहता है. इसका सबसे बड़ा कारण है हम अपने शत्रुओं को अपना निजी संबंधी मानकर उन्हें नष्ट करने से मना कर देते हैं. जैसे अर्जुन अपने गुरुजनों, पितामह आदि को मारना नहीं चाहता था, जबकि वह भली-भांति जानता था कि वे उसके शत्रुओं से मिले हुए हैं. जब तक हम शुभ को पूर्ण स्वीकार कर अशुभ को अपने जीवन से पूर्ण तिलांजलि नहीं दे देते, हमारा जीवन पूर्ववत् ही बना रहता है, चाहे हम कितने ही जप-तप कर लें.

चक्रव्यूह से निकल सके जो


२० सितम्बर २०१८ 
महाभारत के युद्ध में हम सभी ने अभिमन्यु की कथा पढ़ी या सुनी है. अभिमन्यु चक्रव्यूह के छह द्वारों को भेद कर उसमें प्रवेश करना तो जानता था किन्तु सातवें को भेदकर उसमें से वापस निकल पाना उसे नहीं आता था, इसी कारण कौरवों के हाथों उसे मृत्यु प्राप्त हुई. हर मानव की कथा भी लगभग ऐसी ही है. शिशु जब जन्म लेता है, वह मानो जीवन के चक्रव्यूह में प्रवेश कर रहा है. जन्मते ही पहला चक्र जो उसे भेदना है वह है प्राण, अब तक वह स्वयं श्वास नहीं लेता था, पर अब उसके फेफड़े श्वास के लिए आतुर हैं. बच्चे का प्रथम रुदन इस चक्र के भेदन का प्रतीक है. दूसरा चक्र है देह, पहले उसे भूख के लिए कुछ करना नहीं था, अब देह में भोजन के लिए पुकार उठती है. तीसरा चक्र है मन, बाल्यावस्था में ही उसकी पसंद-नापसंद एक ढांचे में ढलने लगती है. चौथा चक्र है बुद्धि, स्कूल, कालेज में विद्याध्ययन करके उसके इस चक्र का भेदन होता है. पांचवा चक्र है स्मृति, पूर्वजन्मों की अथवा जन्म से लेकर हर घटना उसके चित्त पर अपनी छाप छोड़ देती है, जिसे उसे धारण करना है. छठा चक्र है, अहंकार, उसे लगता है वह इस जगत में विशिष्ट है, उसे अपनी पहचान बनानी है. यहाँ तक हर मानव पहुंच जाता है, और इसके बाद कौरवों रूपी मृत्यु के पाश उसे घेर लेते हैं. सातवाँ और अंतिम चक्र है आत्मा, जिसे कोई-कोई ही भेद पाता है. इसे भेद कर ही जीवन के इस चक्रव्यूह से बाहर निकला जा सकता है.     

Tuesday, September 18, 2018

महापुरुष श्रीयुत शंकरदेव


१९ सितम्बर २०१८ 
भक्तिकाल के महान संत कवि श्री शंकरदेव जी की जयंती आज पूरे असम प्रदेश में श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है. सूर, तुलसी, कबीर जिस तरह उत्तर भारत में आस्था और सम्मान के साथ स्मरण किये जाते हैं वैसे ही शंकर देव असम में पूजनीय हैं. इनके लिखे बोर गीत नामघर में, जो यहाँ के मन्दिर हैं, जन-जन के अधरों पर नित्य ही सुशोभित होते हैं. यहाँ मूर्तिपूजा नहीं होती, परमात्मा के नाम का ही गान किया जाता है. शंकरदेव कवि, नाटककार, संगीतकार और संस्कृत के महान विद्वान् थे. इन्होने भागवद् पुराण का असमिया भाषा में अनुवाद किया, इसी ग्रन्थ को नामघर में वेदी पर रखा जाता है. वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले शंकर देव ने ‘एक शरण’ नामसे एक नये पन्थ की स्थापना की. उस समय असम में तरह-तरह के अन्धविश्वास फैले थे और बलिप्रथा का बहुत प्रचार था. समाज को एक नये अहिंसावादी धर्म का मार्ग दिखाकर उन्होंने एक क्रांतिकारी कदम उठाया, उस समय उन्हें काफी प्रतिरोध भी झेलना पड़ा, किंतु वे हर परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. उस समय से आजतक  असम के साहित्य, नाट्यकला, गीत-संगीत पर शंकरदेव का गहरा प्रभाव दृष्टिगोचर होता है.

Sunday, September 16, 2018

स्वयं से मिलना होगा जब

१६ सितम्बर 2018
अध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिए जो सबसे पहली पात्रता है, वह है स्वयं का ज्ञान. अध्यात्म शब्द का अर्थ है-आत्म संबंधी. स्वयं को जानने के लिए पहले हमें अपने सम्पूर्ण अस्तित्त्व - शरीर, प्राण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार व आत्मा, हरेक का ज्ञान करना होगा. इसमें प्रथम यानि देह स्थूल है और शेष सभी सूक्ष्म. आत्मा इन सबको प्रकाशित करता है, अर्थात जिसके होने से ही देह आदि का अस्तित्त्व है. हमारा जीवन यदि देह तक ही सीमित है, अर्थात देह को स्वस्थ रखना, उसे आराम देना, सजाना-संवारना ही यदि हमारे लिए प्रमुख है तो हम अध्यात्म से बहुत दूर हैं. यदि हम मानसिक चिन्तन मनन अधिक करते हैं, साहित्य, कला आदि में हमारी रूचि है, या हम मनोरंजन के लिए लालायित रहते हैं तो भी हम अभी अध्यात्म से दूर हैं. बौद्धिक चिंतन भी हमें आत्मज्ञानी नहीं बनाता. इसके लिए तो इन छह स्तरों को पार करके स्वयं के होने का अनुभव करना होगा. स्वयं की सत्ता को जिसने जान लिया उसने अध्यात्म के पथ पर कदम रख दिया. अब धीरे-धीरे मन के संस्कारों का दर्शन आरम्भ होगा, तत्पश्चात उसका शुद्धिकरण आरंभ होगा.

Saturday, September 15, 2018

ढाई आखर प्रेम का


१५ सितम्बर २०१८ 
जगत का आधार है प्रेम, अपने शुद्ध रूप में प्रेम ही परमात्मा है. जीव जगत में प्रेम के कितने ही अनुपम रूप देखने को मिलते हैं. चकोर का चाँद के प्रति प्रेम, चातक का स्वाति नक्षत्र में गिरने वाली वर्षा की बूंद के प्रति प्रेम, पतंगे का दीपक के प्रति प्रेम और सूर्यमुखी का सूर्य के प्रति प्रेम का बखान करते हुए गीत कवियों ने गाये हैं. जैसे परमात्मा अनंत है वैसे ही प्रेम की गहराई को कोई माप नहीं सकता. हर आत्मा में वह प्रेम छुपा है जो वह कितना ही लुटाये समाप्त नहीं होने वाला, फिर भी हम अपने आसपास हिंसा और शोषण होते हुए देखते हैं. अपने भीतर के हीरे को जिसने तराशा नहीं वह उसे कोयला समझ कर व्यर्थ ही जलता और जलाता है. प्रेम की यह अनमोल संपदा जिसके पास है वह अकिंचन होते हुए भी तृप्त रहता है.

Friday, September 14, 2018

हिंदी दिवस पर शुभकामनायें


 १४ सितम्बर २०१८ 
आज हिंदी दिवस है. हिंदी एक सरल, सहज और मधुर भाषा है. यह आसानी से समझी और बोली जाती है. बोलचाल की हिंदी सीखने में अहिन्दी भाषियों को ज्यादा समय नहीं लगता. यहाँ असम में जहाँ हम रहते हैं, लगभग हर प्रान्त के लोग रहते हैं. पंजाबी, तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली, मलयालम और असमिया भाषा-भाषी लोग हिंदी को ही सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयोग में लाते हैं. हर तबके के लोग हिंदी समझ लेते हैं और बोलने का प्रयास करते हैं. यह सही है कि राजकाज की भाषा के रूप में हिंदी का समुचित विकास नहीं हो रहा है और न ही निकट भविष्य में ऐसा होने की आशा है. हिंदी को अपने बलबूते पर ही आगे बढ़ना होगा. जन-जन में लोकप्रिय होने होने के कारण हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है.

Tuesday, September 11, 2018

विश्वाधारा विनायका


१२ सितम्बर २०१८ 
जो भी अभाव प्रतीत होता है, वह प्रकृति में है, चैतन्य पूर्ण है, लेकिन वहाँ सदा नहीं रहा जा सकता. उस पूर्णता को हृदय में भरकर रहना तो इसी प्रकृति में है. गणेश पूजा का उत्सव इसी बात का स्मरण कराता है. देवता को पूजा के स्थान पर बैठाकर उसकी आराधना करनी है फिर उससे वरदान पाकर जीवन को भर लेना है और अंत में देवमूर्ति को भी विसर्जित कर देना है. गणेश शुभता के प्रतीक हैं, ज्ञान और विवेक के भी. वे विघ्न हर्ता हैं और मंगलकारक भी. हमें अपने जीवन में उनकी उपस्थिति हर पल चाहिए. शुभ की कामना करते हुए यदि हम ज्ञान धारण करें, वही मंगलकारी हो सकता है. वास्तविक ज्ञान हमें विनम्र बनाता है. गणपति के हाथ में मोदक है अर्थात आह्लाद और उल्लास सदा उनके अपने हाथ में है, उसके लिए कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है. जिस दिन हमारा सुख भी सदा अपने पास ही नजर आने लगेगा, उसी दिन हमें गणपति की पूजा का फल मिला है, ऐसा मानना होगा. गणेश के रूप की हर बात कुछ न कुछ संदेश अपने पीछे छिपाए है. हमें उन संदेशों को गुनना है और स्वयं तथा जगत के लिए मंगल कामना करनी है.

Monday, September 10, 2018

कबीर मन निर्मल भया


११ सितम्बर २०१८ 
जीवन में प्रतिपल प्रसाद बंट रहा है, प्रसाद का एक अर्थ है प्रसन्नता. निर्मलता और कृपा भी इस उल्लास में शामिल हैं, यह प्रसाद बिना किसी पात्रता के बंटता है, सब पर समान रूप से, बशर्ते कोई इसके लिए उत्सुक हो. जब जीवन में सत्य को जानने की प्यास जगे, किसी जागे हुए संत के प्रति श्रद्धा का भाव जगे और स्वयं को सदा सर्वदा आनंदित देखने की चाह जगे तो समझना चाहिए कि इसी प्रसाद की तलाश है. सुबह से शाम तक हम कितने ही कार्य देह के लिए करते हैं, मन के रंजन के लिए भी हर कोई कुछ न कुछ समय निकाल ही लेता है, पर उसके लिए जो इस देह और मन को चलाता है, जिसके कारण ये दोनों हैं, जो देह के द्वारा जगत में कार्य करता है और मन के द्वारा चिंतन-मनन करता है, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता. उसी को इस प्रसाद की आवश्यकता है. नियमित योग साधना और ध्यान से हम उससे परिचित होने लगते हैं और एक दिन उस कृपा को अनुभव भी करते हैं जो प्रतिपल बरस रही है.   

Sunday, September 9, 2018

मन खाली देख चला आता वह


१० सितम्बर २०१८ 
लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो हमें करना है उसे कर लें और जो नहीं करना है उसे त्याग दें, जो जीवन के लिए उपादेय है उसे साध लें और जो हेय है, उसे त्याग दें. इतनी सी ही साधना है और इतना सा ही जीवन है. हर पल हम कुछ ग्रहण करते हैं और कुछ छोड़ते हैं. सर्वप्रथम तो श्वास को ही लें, भीतर आती हुई श्वास से ऊर्जा ग्रहण करते ही बाहर जाती हुई श्वास के साथ दूषित वायु का त्याग होता है. प्रातःकल उठकर शौच आदि के त्याग बाद ही कुछ ग्रहण किया जाता है. मैले वस्त्रों का त्याग किया और स्वच्छ वस्त्र धारण किये. बाहर के जगत में हर घड़ी यह क्रिया चल रही है, किन्तु भीतर के जगत में कितना कुछ एकत्र हो गया है. बचपन में की गयी शैतानियाँ भी याद हैं और उनके कारण पड़ी डांट भी, युवावस्था में की गयी नादानियाँ भी याद हैं और उनके कारण हुई झेंप भी, कल किसी से वाद-विवाद हुआ था उसकी धूल अभी झाड़ी ही नहीं कि आज सुबह फिर किसी को फटकार लगायी. छोटी-छोटी बातों पर जब कभी मन आहत हुआ होगा वह सब भी सम्भाल कर रखा है. त्यागने की कला सीखी ही नहीं, इसे ही जैन शास्त्रों में निर्जरा कहते हैं, बीता हुआ सब कुछ जो भी असार है, जो किसी काम का ही नहीं, जो छिलका ही छिलका है, उसे क्यों सहेज कर रखना भला. ध्यान में ऐसा ही करना है, जो भी भीतर आये उसे नदी की धारा की तरह बहते चले जाने देना है, बिना कोई टिप्पणी किये, और एक दिन मन खाली हो जाता है. वहाँ सुंदर बगीचा बन जाता है, जहाँ किसी भी वक्त जाओ सुवास ही सुवास मिलती है, तल्खियों का कोई धुआं नहीं होता.  

Thursday, September 6, 2018

टिका रहे उत्साही मन जब


७ सितम्बर २०१८ 
जगत परिवर्तनशील है, मन भी परिवर्तनशील है. सदा सत, रज और तम में डोलता रहता है. प्रारब्ध के अनुसार कभी भीतर सत प्रबल रहता है कभी रज या तम. पुरुषार्थ करके इसे सदा सत में स्थित रखना है, और फिर इसके भी पार निकल जाना है. पुरुषार्थ प्रतिदिन करना होगा, जैसे घर में रोज ही सफाई होती है, तन का नित्य ही स्नान होता है, ऐसे ही मन को सत में टिकने का प्रयास भी सतत करना होता है. मन किस अवस्था में है इसका भान साधक को तत्क्षण हो जाता है, जब भी भीतर असहजता का भान हो, स्वर में हल्की सी भी तल्खी आ जाये, तो समझ में आता है तमस या रजस बढ़ा हुआ है. किसी दिन सुबह नींद से जगने के बाद भी भीतर स्फूर्ति का अनुभव न हो तो भी जानना चाहिए कि तमस की अधिकता है, और अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है, वरना कर्मों और संबंधों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा. संबंध दर्पण की तरह हमारे मन का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करते हैं. जिस दिन ऐसा लगे कि मधुरता खो रही है, सजग होकर सत्व में टिकने का प्रयास करना चाहिए. जीवन का सौन्दर्य एक क्षण के लिए भी मिटता नहीं है, बस उसे निहारने वाली चेतना चंचलता या जड़ता से धूमिल हो जाती है.  

Wednesday, September 5, 2018

चलें योग के पथ पर सब मिल

 ६ सितम्बर २०१८ 
यम और नियम योग का आधार हैं. योग का अर्थ है जुड़ना, जुड़ने के लिए दो की आवश्यकता है, जुड़ने के बाद भले ही वे दो न रहकर एक हो जाएँ. जैसे दूध और पानी का योग होने के बाद उन्हें अलग-अलग देखना सम्भव नहीं, हाँ किसी उपाय के द्वारा उन्हें अलग अवश्य किया जा सकता है. मन का योग होने का अर्थ है उसके सभी विचार जुड़ जाएँ, अनेक की जगह एक ही विचार शेष रहे, तो मन योगयुक्त हुआ मान सकते हैं. बुद्धि योग का अर्थ हुआ जब बुद्धि एक ही निर्णय दे, संकल्प के विपरीत कोई विकल्प न उठाये. अत्मयोग का अर्थ हुआ जब ‘स्वयं’ मात्र शेष रहे, केवल एक उपस्थिति मात्र, एक शांतिपूर्ण अवस्था, जिसमें कोई संकल्प भी न उठे. परमात्मा योग का अर्थ हुआ जब स्वयं का भी भान न रहे, उस अवस्था को संतों ने अवर्णनीय कहा है, क्योंकि उसमें न कोई देखने वाला है न अनुभव करने वाला. आमतौर पर योग का अर्थ हम आसन और प्राणायाम से ही लगाते हैं, ये दोनों योग के पथ पर चलने के साधन हैं.

Monday, September 3, 2018

एक हुआ जो सारे जग से


४ सितम्बर २०१८ 
हम आज जो भी हैं, इसका चुनाव हमने ही किया है. हम कल क्या हों, इसका चुनाव अब हमें करना है. पूर्वाग्रहों, मान्यताओं और आदतों के अनुसार ही जीवन चलता रहा तो भविष्य का अनुमान लगाना जरा भी कठिन नहीं, हम वही होंगे जो आज हैं. जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने का यदि मन बना लिया और स्वयं को उसमें बाधा न बनने दिया तो भविष्य बिलकुल नया होगा. जीवन बढ़ने और चलने का नाम है, यह वाक्य सुनने में कितना भला लगता है, कदम-कदम आगे बढ़ते जाने से एक दिन हम स्वयं को बिलकुल बदला हुआ पायेंगे. योग साधना का यही लक्ष्य है, सर्व दुखों से मुक्ति का नाम ही योग है. अस्तित्त्व के साथ एक्य ही योग है. योग के आठ अंगों में से एक को जो साध लेता है, वह मंजिल की ओर चल पड़ता है. पांच यमों और पांच नियमों में से एक-एक की भी साधना यदि कोई करता है तो अन्य भी सधने लगते हैं.

Sunday, September 2, 2018

कान्हा की हर बात निराली


३ सितम्बर २०१८ 
कृष्ण को चाहने वाले इस जगत में हजारों नहीं लाखों हैं, या करोड़ों भी हो सकते हैं, किंतु कृष्ण की बात को समझने वाले और उसका स्वयं के भीतर अनुभव करने वाले संत ही होते हैं. उनके जीवन के हर पहलू से हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. कारागार में जन्म लेना क्या यह नहीं सिखाता कि आत्मा का जन्म देह की कैद में ही सम्भव है. मानव जन्म लिए बिना कोई आत्मा का अनुभव कर ही नहीं सकता. जन्म के बाद वह गोकुल चले जाते हैं, नन्द और यशोदा के यहाँ, अर्थात आत्मअनुभव के बाद नन्द रूपी आनंद की छत्र छाया में ही रहना है और यशोदा की तरह अन्यों को यश बांटते रहना है. बांटने की कला कोई कृष्ण से सीखे, वह मक्खन चुराते हैं ग्वाल-बालों और बंदरों में बांटने के लिए. बांसुरी बजाते हैं यह जताने के लिए कि सृष्टि संगीत मयी है, जीवन में यदि गीत और संगीत न हो तो कैसा जीवन. आज के युग में जीवन को संघर्ष का नाम दिया जाता है, जबकि कृष्ण की परिभाषा है जीवन एक उत्सव है. जन्माष्टमी पर हम कृष्ण के बालरूप को सजाते हैं, संत भी बालवत हो जाते हैं, इसका अर्थ हुआ यदि हमारे भीतर बचपन अभी जीवित है तो हम भी आत्मा के निकट हैं.  

Saturday, September 1, 2018

अच्युतम, केशवम, कृष्ण दामोदरम


१ सितम्बर २०१८ 
कृष्ण का अर्थ है जो आकर्षित करता है, कृष्ण छोटे-बड़े, नर-नारी, पशु-पंछी सभी के मन को मोहता है. कृष्ण शुद्ध निर्विकार प्रेममयी आत्मा का प्रतीक है. उपनिषद में ऋषि कहते हैं, पुत्र पुत्र के लिए प्रिय नहीं होता आत्मा के लिए प्रिय होता है. इसी लिए कृष्ण हर किसी का प्रिय है. उसे किसी भी संबंध में बांधें वह बंधने के लिए तैयार है, वह पुत्र है, भाई है, मित्र है, सखा है, प्रेमी है, शिक्षक है, गुरू है, सेवक है, स्वामी है, राजा है, सारथि है. वह ज्ञानी है, योगी है, अपने भक्तों का भक्त भी है. उसे गौएँ चाहती हैं, मोर उसके इशारों पर नाचते हैं, हिरण उसकी वंशी की धुन सुनकर ठहर जाते हैं, यमुना का नीर बहना भूल जाता है, गोवर्धन थिर नहीं रह पाता, कुंजगलियाँ भीं उसकी राह तकती हैं, वृक्ष जिनके तने की टेक लगाकर वह खड़ा होता है, या बैठता है, उसके लिए सदा छाया करने को तत्पर रहते हैं, उनमें हर ऋतु में पुष्प खिलने को आतुर रहते हैं. युगों-युगों में ऐसा सुहृद धरा पर आता है, जिसके जाने के हजारों वर्ष बाद भी वह जन-जन के मन-प्राण को मुग्ध करने की क्षमता रखता है. ऐसे कृष्ण का जन्मदिवस आने वाला है. हर्ष और उल्लास के साथ हम उसे याद करें और भगवद् गीता में दिए उसके उपदेशों को जीवन में धारण करें.