Sunday, January 24, 2021

जहाँ विजय है लोकतंत्र की

कल देश का बहत्तरवाँ गणतंत्र दिवस है, कोरोना के कारण इस बार परेड में कुछ बदलाव हुए हैं, मुख्य अतिथि भी नहीं आ रहे हैं। राजधानी में किसानों के आंदोलन के कारण भी कुछ अनिश्चितता का वातावरण है। किन्तु कुछ भी हो, देश वासियों के दिलों में गणतंत्र दिवस मनाने का जोश उतना ही है। पिछले एक वर्ष में बहुत कुछ ऐसा हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था, लंबा लॉक डाउन, मजदूरों की घर वापसी, कोरोना के कारण अस्पतालों में मरीजों की बेतहाशा भर्ती, आर्थिक मंदी, स्कूलों का बंद होना और भी कितनी कठिनाइयों को झेलते हुए यह पिछला वर्ष पूरी दुनिया के लिए एक चिंता की वजह छोड़ गया है। इन सबके बावजूद मानव आगे की ओर देख रहा है,  वैक्सीन का निर्माण हो चुका है, कोरोना पर काफी हद तक नियंत्रण हो चुका है। भारत विश्व के कई देशों को इसकी वैक्सीन भेजने में सक्षम है, यह बात भी हमारे लिए कितने गर्व की है। एक बार फिर राजपथ पर सुंदर झाँकियाँ, बच्चों के द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा सैन्य बलों का प्रदर्शन एक बार फिर यह सिद्ध कर देगा कि आपदा चाहे कितनी भी भीषण क्यों न हो मानवता अपना मार्ग ढूंढ ही लेती है। अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो उजाले को रोक नहीं सकता। बांग्ला देश की आजादी की स्वर्णजयंती के अवसर पर वहाँ का एक सैन्य बैंड भी गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेगा।  

 

Thursday, January 21, 2021

सुमन बनेगा जिस क्षण मन यह

 

एक पुष्प का जीवन भी तो पंच तत्वों से ही बना है। धरती ने उसे आधार दिया। जल तथा सूर्य की किरणों ने आहार दिया। पवन के झोंकों ने प्राण दिए तथा प्रेम से सहलाया,  हिलाया-डुलाया। गगन में वह विस्तार पाता है, यदि इनमें से कोई एक भी न हो तो फूल की यात्रा अधूरी ही रह जाएगी। फूल का एक नाम है सुमन अर्थात ऐसा मन जो फूल के समान खिला हो या सुंदर हो ! जो मन धरा से जुड़ा है अर्थात सहनशील व धैर्यवान हो, जल की भांति गतिमान हो, प्रकाश की भांति सदा आगे ही बढ़ने का संकल्प जिसमें हो, गगन की भांति सबको अपने भीतर समेटने की क्षमता रखता हो, पवन की नाईं  उसका परस औरों के लिए सुखदाई हो और जीवन का पोषक हो। किसी मीरा या कबीर का ऐसा सु-मन ही फूल की तरह परम के चरणों में चढ़ाए जाने योग्य है।

Wednesday, January 20, 2021

खाली क्यों है मन की गागर

 मन की गागर को जितना भी भरा जाये, वह खाली ही रहती है. वास्तव में मन की पेंदी ही नहीं है और हम एक असाध्य कार्य में लगे हैं. कोई संगीत से इसे भरना चाहता है तो कोई सुस्वादु भोजन से, कोई विभिन्न स्थानों की सैर करके तो कोई बड़ा सा घर बनाकर, कोई किताबों में उस रिक्तता का हल खोजता है तो कोई दिन रात काम में व्यस्त रहकर भीतर के खालीपन को भुलाना चाहता है. सन्त और शास्त्र कहते हैं मन का स्वभाव ही अपूर्णता है. यदि कोई जीवन की पूर्णता का अनुभव वास्तव में करना चाहता है तो उसे मन के इस स्वभाव को जानना होगा, मन नाम ही उसी का है जो सदा डोलता रहता है, कभी वर्तमान में ठहरता ही नहीं. हमने स्वयं को मन के साथ इस तरह एक कर लिया है कि उसकी अपूर्णता को हम स्वयं की अपूर्णता मान बैठे हैं. ध्यान में ही हमें मन से स्वयं का अलगाव महसूस होता है और विचारों को देखना हम सीखते हैं. ध्यान का अभ्यास बढ़ते-बढ़ते एक अवस्था ऐसी आती है जब विचारों का हम पर कोई प्रभाव नहीं रहता, वे आकाश में आने जाने वाले बादलों की तरह आते और जाते हैं. आगे जाकर हम देखते हैं कि विचारों को हम किस तरह क्षण भर में परिवर्तित कर सकते हैं. चिंता, तनाव आदि शब्द तब बेमानी हो जाते हैं. एक ही विचार को बार-बार मन में लाना ही तो चिंता है, जब हम नकारात्मक विचार आते ही उसे बदल दें तो मन हमारे नियंत्रण में आ गया. अब उसे भरने की फ़िक्र नहीं करनी है क्योंकि हम सदा ही पूर्ण हैं.  


Sunday, January 17, 2021

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि

 

जिस सृष्टि का निर्माण हमने ही किया है, हम उसे ही न जानें और उससे ही प्रभावित हो जाएं, यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है ! बाहर की तरह अपने भीतर हर पल हम एक वातावरण का निर्माण करते हैं जो विचारों और भावनाओं से बना है। हम ही उसका संवर्धन भी करते हैं और कुछ समय बाद उसका संहार भी कर देते हैं। हमारी सृष्टि हमारी आशाओं और आकांक्षाओं को ही तो प्रदर्शित करती है। यदि यह सुखद नहीं है तो भी हम ही इसके लिए उत्तरदायी हैं। जिसे भाग्य कहा जाता है वह एक दिन हमारे ही द्वारा किए गए पुरुषार्थ से जन्मा है।

Tuesday, January 12, 2021

जीवन का अधिकार सभी को

 जीवन की कितनी ही परिभाषाएँ दार्शनिकों और साहित्यकारों तथा अनेकों ने दी हैं. कोई इसे यात्रा कहता है तो कोई घटनाओं का एक क्रम। कोई कहता है जीवन सीखने का नाम है, आगे बढ़ने का नाम है. किसी ने यह भी कहा है कि जीवन एक पुस्तक है जिसे पढ़ना सदा ही शेष रहता है. आज तक हमारे जीवन में जो भी घटा है वह अनुभूत हो चुका है किन्तु अगले ही पल क्या होने वाला है, कोई नहीं जानता। जीवन की पुस्तक का अगला पन्ना जब खुलेगा तभी उसे पढ़ सकते हैं. वैज्ञानिक और भविष्यवक्ता अवश्य पूर्वानुमानों के आधार पर अवश्य कुछ सुझाव देते रहते हैं, पर हम उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देते. जलवायु परिवर्तन और महामारियों के बारे में भी पहले कितनी ही बार सचेत किया गया है, किन्तु इक्कीसवीं सदी में भी विकसित देश युद्ध और हथियारों में धन लगाना ज्यादा आवश्यक समझते रहे हैं. आवश्यकता है कि सभी देश आपसी विवादों को सुलझाकर पूरी धरती को एक परिवार मानकर हरेक को सम्मान से जीने का अधिकार दें, क्योंकि  आज के हालातों में विश्व का कोई भी देश अपने बलबूते पर किसी समस्या का सामना नहीं कर सकता. 


Tuesday, January 5, 2021

कर्ताभाव का त्याग करे जो

भगवद्गीता में एक जगह अर्जुन ने कृष्ण से पूछा है, ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है ? और कर्म क्या है ? कृष्ण कहते हैं जो परम है अर्थात सर्वश्रेष्ठ है; जो  अक्षर है अर्थात अविनाशी है; वही ब्रह्म है. हम अपने आसपास वस्तुओं को नित्य बनते-नष्ट होते देखते हैं, लोगों को जन्मते व मरते देखते हैं, क्या ऐसा कुछ है जो कभी नष्ट नहीं होता. वास्तव में वस्तुएं अपना रूप बदल लेती हैं, बीज नष्ट होता है तो वृक्ष बन जाता है, वृक्ष नष्ट हो जाता है तो अंततः खाद बनकर मिट्टी में ही मिल जाता है. विज्ञान में हमने पढ़ा है कि ऊर्जा और पदार्थ न बनाये जा सकते हैं न नष्ट किये जा सकते हैं, केवल उन्हें परिवर्तित किया जा सकता है. ब्रह्म ऐसा पदार्थ या ऊर्जा है जो सदा एक सा है. दूसरे प्रश्न के उत्तर में कृष्ण कहते हैं, स्वभाव ही अध्यात्म है. हर प्राणी का मूल स्वभाव जो शिशु जन्म से अपने साथ लेकर आता है, अध्यात्म है. जब तक बच्चा भाषा नहीं सीख लेता वह स्वभाव से ही संवाद करता है, प्रकृति में सभी जीव उसी मूल स्वभाव से जुड़े हैं, एक बिल्ली अथवा कुत्ते को कैसे ज्ञात हो जाता है कि उसे स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए कौन सा पत्ता खाना है. संत मौन से ही वृक्षों के साथ संवाद कर लेते हैं क्योंकि वह निज स्वभाव में रहते हैं. कर्म की परिभाषा में कृष्ण कहते हैं, भूतों के भाव का त्याग ही कर्म है, अर्थात जब हम अपने मूल स्वभाव से हट हो जाते हैं तो कर्ता भाव में आ जाते हैं. कितने ही साधक कहते हैं साधना काल में मन शांत रहता है पर कर्म करते समय मन विचलित हो जाता है. इसका अर्थ है कि हम अध्यात्म से नीचे उतर गए. इसीलिए कृष्ण निष्काम कर्म करने के लिए कहते हैं जो आत्मा में स्थित रहकर किया जा सकता  है तथा जिसका कोई बन्धन नहीं होता.