Friday, December 31, 2021

नए वर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएँ

अनंत काल से यह सृष्टि चल रही है, लाखों मानव आये और चले गये, कितने नक्षत्र बने और टूटे. कितनी विचार धाराएँ पनपी और बिखर गयीं. कितने देश बने और लुप्त हो गये. इतिहास की नजर जहाँ तक जाती है सृष्टि उससे भी पुरानी है, फिर एक मानव का सत्तर-अस्सी वर्ष का छोटा सा जीवन क्या एक बूंद जैसा नहीं लगता इस महासागर में, व्यर्थ की चिंताओं में फंसकर वह इसे बोझिल बना लेता है. हर प्रातः जैसे एक नया जन्म होता है, दिनभर क्रीड़ा करने के बाद जैसे एक बालक निशंक माँ की गोद में सो जाता है, वैसे ही हर जीव प्रकृति की गोद में सुरक्षित है. यदि जीवन में एक सादगी हो, आवश्यकताएं कम हों और हृदय परम के प्रति श्रद्धा से भरा हो तो हर दिन एक उत्सव है और हर रात्रि परम विश्रांति का अवसर !  हर बार नया वर्ष आकर हमें इस सत्य से अवगत कराता है कि जीवन का लक्ष्य भीतर के आनंद को पाना और उसे जगत में लुटाना मात्र है। 


Sunday, December 26, 2021

सहनशील चेतना हो जिसकी

जीवन क्या है ? क्या निरंतर कुछ न कुछ अनुभव करते रहने की ललक का ही दूसरा नाम जीवन नहीं है। शिशु के जन्म लेते ही यह प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। जब तक देहाध्यास  नहीं छूटता, इंद्रियों से अनुभव लेने की कामना का नाश नहीं होता। हर नए प्रातः में हमारा पदार्पण यदि सजगता पूर्ण हो तो इन अनुभवों को ग्रहण करते हुए भी जीवन के मूल्यों को हम किसी भी क्षण विस्मृत नहीं करेंगे। हमारा अंतर स्वप्नशील हो जिसमें एक शिव संकल्प जलता रहे जो सदा प्रेरित करे। राह में यदि कांटे हों, अनदेखा करके कोई खुद को बचा कर निकल जाता है, पर संवेदनशील कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा वही अपनी चेतना को विकसित कर सकता है, नित नया सृजन करता है. जैसे प्रकृति नित नई है, यदि मन हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे। यह अनादि सत्य है कि सनातन मूल्यों को पकड़ कर ही नया सृजन होता है, वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर ही नया फूल खिलता है.


Wednesday, December 15, 2021

तमसो मा ज्योतिर्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय नामक वैदिक मंत्र में अंधकार से प्रकाश की ओर  ले जाने की प्रार्थना की गयी है। अंधकार में टकराने का भय है, सर्प आदि जंतुओं का डर भी है। अपने वास्तविक स्वरूप का अज्ञान ही अंधकार है, जिसके कारण जगत में  सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान से टकराना पड़ता है। क्रोध, लोभ, मोह आदि के सर्प, बिच्छू आदि के काटने का डर बना रहता है। जैसे ही स्वयं का बोध होता है, अर्थात् ज्ञान का दीपक जलता है, तो ये सभी स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते हैं। इनसे बचकर रहा जा सकता है, क्योंकि स्वयं के भीतर समता का वह स्थान प्राप्त हो जाता है जहाँ से आनंद, शांति और प्रेम की अबाध धारा निरंतर बहती रहती है। अज्ञान काल में ही राग-द्वेष सताते हैं, क्रोध आदि शत्रु जलाते हैं, जब आत्मबोध होता है तब इनकी सत्ता उसी तरह विलीन हो जाती है जैसे दिया जलते ही अंधकार दूर हो जाता है। जैसे स्वप्न में होने वाली हानि को हम हानि नहीं मानते वैसे ही ज्ञान होने पर जगत में होने वाले सुख-दुःख,लाभ-हानि आदि स्वप्नवत ही प्रतीत होते हैं। 


Saturday, December 11, 2021

ज्ञान वही जो समता लाये

 जीवन हमारे सम्मुख नित नई चुनौतियाँ लाता है, मन की समता बनाये रखते हुए हमें उनका सामना करना है. ज्ञान के छोटे-छोटे सूत्रों को किसी भी चुनौती के आने पर उपयोग में लाते ही वह अपना हो जाता है और मन की समता बनी रहती है. जीवन को यदि हम एक विशाल दृष्टिकोण से देखते हैं तो सत्य के निकट होते हैं. यह सृष्टि अनंत काल से चली आ रही है, हमारा जीवन काल उसकी तुलना में नगण्य है, यह स्मरण रखें तो अहंकार को बचने के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता. एक ही ऊर्जा से यह सारा जगत बना है यह स्मरण हमें सबके साथ जोड़ देता है. हमारा मन परमात्मा के विशाल मन का ही एक भाग है यह स्मरण रखें तो हम भय से मुक्त हो जाते हैं. सुख-दुःख उसी तरह आते और जाते हैं जैसे मौसम बदलते हैं, इसलिए न तो सुख मिलने पर हमें अति प्रसन्न होना है और न ही दुःख आने पर व्यथित होना है. स्वयं का ज्ञान ही समय पर हमारी रक्षा करता है, इसलिए शास्त्रों का अध्ययन और गुरू से आत्मज्ञान का श्रवण आवश्यक है. जिस ज्ञान को हमने अपना नहीं बनाया वह मस्तिष्क पर बोझ ही है. 

Monday, December 6, 2021

दिव्य प्रेम के रूप अनेक

नारद भक्ति सूत्र के आधार पर प्रेम की व्याख्या करते हुए गुरूजी कहते हैं, प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता, वह भाव से भी परे है। भावुकता प्रेम नहीं है, भीतर की दृढ़ता ही प्रेम है, सत्यप्रियता ही प्रेम है और असीम शांति भी प्रेम का ही रूप है. भीतर ही भीतर जो मीठे झरने सा रिसता रहता है वह भी तो प्रेम है. प्रभु हर पल प्रेम लुटा रहे हैं. तारों का प्रकाश, चाँद, सूर्य की प्रभा, पवन का डोलना तथा फूलों की सुगंध सभी तो प्रेम का प्रदर्शन है. प्रकृति प्रेम करती है, घास का कोमल स्पर्श और वर्षा की बूंदों की छुअन सब कुछ तो प्रेम ही है. वृद्ध की आँखों में प्रेम ही झलकता है शिशु की मुस्कान में भी प्रेम ही बसता है. प्रेम हर प्राणी का स्वभाव है और प्रेम से ही वे बने हैं. प्रेम ही ईश्वर है ! 

Sunday, December 5, 2021

तोरा मन दर्पण कहलाये

हमारा तन स्वस्थ रहे ताकि हम साधना कर सकें, साधना करें ताकि मन स्वस्थ रहे, मन स्वस्थ रहे ताकि अंतर साधना हो सके, अंतर साधना हो ताकि मन निर्मल हो, मन निर्मल हो ताकि उसमें परम सत्य का प्रकाश हो, परम सत्य को पायें क्यों कि सत्य ही शिव और सुंदर है, शिव को पायें ताकि हम सभी के लिए सुखद हो जाएँ, हमारे होने से जड़-चेतन किसी को कोई उद्वेग न हो, न ही हमें किसी से कोई उद्वेग हो. सौन्दर्य को पाकर हम चारों ओर सुन्दरता बिखेरें. कुछ भी ऐसा न कहें, सोचें, न करें जो इस जगत को क्षण भर के लिए भी असुन्दर बना दे. ईश्वर की इस सुंदर सृष्टि को देख-देख हम चकित होते हैं, विभोर होते हैं, भीतर प्रेम का अनुभव करते हैं तो और भी चकित होते हैं, कैसे अद्भुत भाव भीतर जगते हैं, यह क्या है? कौन है? किसे अनुभव होता है? कौन अनुभव कराता है? कौन प्रेम देता है? कौन प्रेम लेता है ? ये सारे भाव शब्दों की पकड़ में नहीं आते. संतों की आँखों से ये पल-पल झरते हैं.

Friday, December 3, 2021

तीन के जो भी पार हुआ है

जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तीनों जिस पृष्ठभूमि पर घटते हैं वह एक रस अवस्था है.  बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था तीनों को जो कोई एक अनुभव करता है वह इन तीनों से परे है. भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक इन तीनों प्रकार के दुखों का जो साक्षी है वह इनसे परे है. मन, बुद्धि और संस्कार इन तीनों के भी परे है, सत्व, रज और तम इन तीन गुणों से भी वह अतीत है. यह सब हम शास्त्रों में पढ़ते हैं किन्तु इस पर कभी चिंतन नहीं करते. जागते हुए जो संसार हम देखते हैं वह स्वप्न और नींद में विलीन हो जाता है, स्वप्न में जो दुनिया दिखाई देती है वह आँख खुलते ही गायब हो जाती है, और गहरी नींद में तो व्यक्ति को यह भी ज्ञान नहीं रहता कि वह कौन है ? लेकिन हमारे भीतर कोई एक है जो पीछे रहकर सब देखता रहता है. जो कुछ हम जाग कर करते हैं, या स्वप्न में या नींद गहरी थी या हल्की, वह सब जानता है. बचपन से लेकर वर्तमान की स्मृतियों को जो अनुभव कर रहा है वह मन तो रोज बदल जाता है पर कोई इसके पीछे है जो कभी नहीं बदलता. आज तक न जाने कितने सुख दुःख के पल जीवन में आये, जो इनसे प्रभावित नहीं हुआ वह चैतन्य ही गुणातीत है. ध्यान में जब मन व बुद्धि शांत हो जाते हैं, तब जो केवल अपने होने मात्र का अनुभव होता है, वह उसी के कारण होता है. वह अनुभव शांति और आनंद से मन को भर देता है. इसीलिए हर धर्म में ध्यान को इतनी महत्ता दी गयी है.