Sunday, October 23, 2022

एकै साधै सब सधै

इस जगत में जड़ पदार्थ और चेतना के पीछे कोई एक तत्त्व छुपा हुआ है, जिसने स्वयं को इन दो भागों में बाँट लिया है. जड़ पदार्थ में  वह  सत्ता रूप में स्थित है, मानव से इतर प्राणियों और वनस्पति में सत्ता व चेतना के  रूप में और मानव में सत्ता, चेतना व आनंद के रूप में. भौतिक जगत में रहते हुए हम अनेक वस्तुओं को देखते हैं, किन्तु उनके भीतर एकत्व का अनुभव नहीं कर पाते. अध्यात्म का अर्थ है इस विभिन्नता के पीछे उस एक्य को देख लेना। उस समरसता और एकता का बीज सभी के भीतर है, किंतु केवल मानव के भीतर वह सामर्थ्य है कि उसे पहचाने और अपने अहैतुक प्रेम, आनंद और शांति के रूप में बाहर व्यक्त करे। अध्यात्म से जुड़े व्यक्ति के लिए कर्म का अर्थ केवल अपना सुख प्राप्त करना नहीं है, उसके कर्म सारे जगत के कल्याण की भावना से भरे होते हैं। उसके मन की मूल भावना स्वार्थ से ऊपर उठ जाती है। ऐसे में वह स्वयं तो अपना कल्याण करता ही है, सहज ही जगत के प्रति मैत्री भाव से भर जाता है।

Wednesday, October 19, 2022

जगमग दीप जले

जब भीतर-बाहर, घर, द्वार, बाज़ार, दफ़्तर सभी जगह स्वच्छता का आयोजन सहज ही होने लगता है तब मानना चाहिए कि दिवाली आने वाली है।दीपावली का पर्व अनेक अर्थों को अपने भीतर धारण किए हुए है। यह राम से संयुक्त है तो कृष्ण से भी, इसमें यम की कथा भी आती है और धन्वन्तरि की भी। दिवाली लक्ष्मी से जुड़ी है तो काली से भी। जीवन में राम का आगमन हो तो अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है और ज्ञान, हर मार्ग को प्रकाशित करता हुआ आगे ले जाता है। इस आनंद को अकेले नहीं सबके साथ मिलकर अनुभव करना है, इसलिए इसमें एक-दूसरे को मिष्ठान व उपहार वितरित करते हैं। गोवर्धन पूजा का संदेश है प्रकृति का आराधन। माटी का एक छोटा सा जलता हुआ दीपक दूर से आकर्षित कर लेता है, फिर आज के दिन तो लाखों दीपक जलाए जाते हैं। मानव तन भी माटी से बना है, जिसमें चेतना की बाती जल रही है, जो स्नेह से प्रदीप्त रहती है। भीतर चैतन्य का दीपक जलता हो तो अंतर में उल्लास कम नहीं होता और सहज ही सब ओर बहने लगता है। सृष्टि में प्रकृति के साथ आदान-प्रदान आरम्भ हो जाता है। 


Sunday, October 16, 2022

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:


संत कहते हैं, इस जगत के और हमारे भी केंद्र में जो होना चाहिए, वह ईश्वर है. असल में वह जगह तो भगवान की है; किंतु आज उसकी जगह को अहंकार ने घेरा हुआ है.  मुल्कों के अहंकार ने, शासकों के अहंकार ने। अहंकर केवल सेवक है, पर मानव भूल गया है कि वह ईश्वर  की सत्ता के कारण अपना काम कर रहा है. मानव इस मूलभूत तथ्य को भूल गया है और मनमानी करता है; तब उसे लगता है कि जगत सुंदर नहीं है, जगत में कितने अत्याचार हो रहे हैं. जबकि मानव ने स्वयं प्रकृति को स्वयं कितना नुक़सान पहुँचाया है. कुछ लोग यह सोच कर कि इस कष्ट का अंत कभी नहीं होगा;  जीवन से  भाग जाते हैं,  आत्महत्या तक कर लेते हैं। वे जगत को सुंदर बनाने का कोई प्रयत्न नहीं करते. जो सत्य के पथ पर चलेगा उसका कल्याण होगा, उसे ही सौंदर्य की अनुभूति होगी। सत्यं शिवं सुंदरं के इस छोटे से सूत्र में यह संदेश चिरकाल  से  मानव को दिया गया है। विध्वंस तब होता है जब मानव कुछ और करना नहीं चाहता तब भगवान  के पास कोई विकल्प नहीं रहता. युद्ध कोई समाधान नहीं है, यह मानव की अंतिम मंज़िल नहीं हो सकती, इसके बाद शांति और मेल-मिलाप की सारी यात्रा पुनः करनी होगी। हमें अहिंसा को पुनः परम धर्म के रूप में स्थापित करना है। लक्ष्य यदि सम्मुख हो तो हमें राह मिलने लगती है। धरती को मानव ने दूषित किया है अब उसे ही सुधारना है। आज भारत के ज्ञान के प्रभाव से विश्व में परिवर्तन हो रहा है, अब ईश्वर के बताये मार्ग पर अनेक लोग चलने को उत्सुक हैं. वह दिन दूर नहीं जब भारत की बात सुनी जाएगी और सतयुग का सब जगह दर्शन होगा। 


Wednesday, October 12, 2022

ऐसी वाणी बोलिए

दिव्यता कण-कण में है  चाहे वह जड़ हो या चेतन। उस दिव्यता को हम पहचानें और आत्मसात् करें। एक बार निर्णय हो जाए तो उसी पथ पर चलें। एक मार्ग हो, उसे पकड़ कर राही को चलते जाना है। माना जंगल भी हैं सुंदर, पर दृष्टि को नहीं भटकाना है। नहीं कोई बाधा बन रोके, नहीं कोई जीवन को बहने से टोके । हमारी वाणी के दोष हमें अपनी मंज़िल पर जाने से रोकते हैं। वाणी शुद्द्ध हो, कल्याणकारी हो, रूक्ष ना हो, दोहरे अर्थों वाली न हो।उसमें लोच हो पर स्थिरता भी हो। वाणी में मिठास हो, दूसरों के दोष देखने वाली ना हो। व्याकरण का नियम विचलित न होता हो, भाषा की त्रुटि न हो। उसमें दिखावा न हो, पाखंड न हो, सत्य की अन्वेषी हो। व्यर्थ के कार्यों में न लगती हो। अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हो। ईश्वर का हाथ पकड़कर चलना है, इसका पूरा विश्वास हो। देह, मन, बुद्धि सभी दिव्य बनें। 


Monday, October 3, 2022

विजयदशमी की शुभकामनाएँ

दशहरा अर्थात दशानन का मरण, या दस सिर वाले असुर का विनाश। देवता और असुर दोनों ही कहाँ रहते हैं ? हमारे ही  मन में उनका निवास है, क्योंकि जो ब्रह्मांड में है, वही पिंड में है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया, मद, मत्सर, दर्प, ईर्ष्या तथा अहंकार रूपी रावण के दस सिरों को भगवती दुर्गा की प्रार्थना के बाद ग्रहण की गयी शक्ति के कारण राम रूपी आत्मा नष्ट करती है। मन जब हनुमान की तरह समर्पित होता है और ध्यान  लक्ष्मण की तरह सेवा में तत्पर होता है, तब सीता रूपी बुद्धि को उपरोक्त दस विकारों की क़ैद से मुक्ति प्राप्त होती है। भारत भूमि पर मनाए जाने वाले हर उत्सव का एकमात्र उद्देश्य आत्मा को शक्तिशाली बनाना है ताकि वह प्रकृति के पार जा सके और अपनी दिव्यता को अनुभव करे। 


निज स्वभाव में जो टिक जाए

तीनों गुणों, प्रकृति, काल, कर्म और इस जगत से परे जाकर हमें अपने जीवन को पवित्र बनाना है. भोर में उठकर पहला विचार मांगलिक हो, रात्रि में सोने से पूर्व स्वयं में स्थित होकर सहज होकर  सोएँ. इस जगत में जहाँ हर क्षण सब कुछ बदल रहा है, जहाँ हमें कितने प्रभावों का सामना करना पड़ता है. कभी-कभी शोक के क्षण जो बना माँगे ही हमें मिलते रहते हैं क्या वे पूर्व कृत्यों का फल नहीं हैं ? हमारी प्रकृति कैसी है, सात्विक, राजसिक अथवा तामसिक, इस पर भी कर्म निर्भर करते हैं, जिस गुण की प्रधानता हो वैसा ही स्वभाव हम धर लेते हैं, जिस वातावरण में हम रहते हैं पूर्व संस्कारों के अनुसार वही भाव दशा हमारे मन की हो जाती है. लेकिन हमें इन सारे प्रभावों से पार जाना है, अपने स्वभाव में लौटना है. प्रेम करना हमारा स्वभाव है, आनन्द हमारा स्वभाव है ! जब हमें किसी वस्तु का अभाव खटके तो भी हम स्वभाव से हट गये हैं. स्वभाव में तो पूर्णता है, वहाँ कोई कमी है ही नहीं. तो हमें प्रतिपल इस बात का ध्यान रखना होगा, कि अंतःकरण कैसा है, हम स्वभाव में हैं या नहीं, सुख तब कहीं खोजना नहीं पड़ेगा, परमात्मा स्वयं उसे लेकर आएगा.