Thursday, August 31, 2017

जब स्वयं ही आधार बनेगा

३१ अगस्त २०१७ 
जीवन आज कितना कठिन होता जा रहा है. कहीं अत्यधिक वर्षा, कहीं तूफान, कहीं सूखा..प्रकृति के बदलते हुए रूप भी आज भयभीत कर रहे हैं. समाज में मूल्यों का इतना अधिक ह्रास हो गया है कि मंदिरों और आश्रमों में भी श्रद्धा और आस्था के नाम पर शोषण किया जा रहा है. ऐसे ही समय में जब बाहर कुछ भी भरोसे करने लायक न बचा हो, भीतर जाकर ही उस आधार को तलाशना होगा जो कभी नहीं बदलता. जो भीतर जाकर देख लेता है कि जिसका अपने मन पर ही कोई वश नहीं है, जिसे यही नहीं पता कि अगले पल मन में क्या विचार आने वाला है तो वह बाहर पर नियन्त्रण कैसे कर सकता है. वह नियन्त्रण करने की अपनी प्रवृत्ति का ही त्याग कर देता है. वह कुछ प्राप्त कर लेने की दौड़ से ही बाहर हो जाता है. वह समझ लेता है कि सुख को पाया नहीं जा सकता पर उसके प्रति समर्पित हुआ जा सकता है. अंतर में कृतज्ञता उपजती है. जीवन तब एक उपहार लगता है संघर्ष नहीं लगता. 


Monday, August 28, 2017

कली खिलेगी जिस पल मन की

२९ अगस्त २०१७ 
बसंत और बहार की ऋतु में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है, इसका कारण है कि पेड़-पौधे व वृक्ष अपनी मंजिल पर पहुँच जाते हैं, अर्थात खिल जाते हैं. हमारा मन भी जिस दिन अपनी मंजिल को छू भर लेगा, उसका मौसम भी बदल जायेगा. अभी मन को तलाश है, वह कुछ पाना चाहता है, तभी दिन-रात किसी न किसी उधेड़-बुन में लगा रहता है. मन की कली अभी बंद है, भीतर ही भीतर सुगबुगा रही है, कोई स्पर्श उसे जगा सकता है. कोई पुकार उसे खिला सकती है. कोई कृपा उसे मुक्त कर सकती है. यह सब हो सकता है यदि मन यह मान ले कि वह अभी खिला नहीं है, कि अभी उसे बहार मिली नहीं है, और मन जिस राह पर अब तक चलता आया है उस मार्ग पर तो वह खिल नहीं सकता. मन को खिलने के लिए कोई श्रम नहीं करना है, बस अपने आप में ठहरना है, आखिर कली क्या करती है फूल बनने के लिए, बस स्वयं को धूप और हवा के आश्रय में छोड़ देती है.    

Sunday, August 27, 2017

घट-घट पावन प्रेम छुपा है

२८ अगस्त २०१७ 
हर आत्मा प्रेम से उपजी है, प्रेम ने उसे सींचा है और प्रेम ही उसकी तलाश है. माता-पिता शिशु की देह को जन्म देते हैं, आत्मा उसे अपना घर बनाती है. शिशु और परिवार के मध्य प्रेम का आदान-प्रदान उस क्षण से पहले से ही होने लगता है जब बालक बोलना आरम्भ करता है. अभी उसमें अहंकार का जन्म नहीं हुआ है, राग-द्वेष से वह मुक्त है, सहज ही प्रेम उसके अस्तित्त्व से प्रवाहित होता है. बड़े होने के बाद जब प्रेम का स्रोत विचारों, मान्यताओं, धारणाओं के पीछे दब जाता है, तब प्रेम जताने के लिये शब्दों की आवश्यकता पडती है. जब स्वयं को ही स्वयं का प्रेम नहीं मिलता तो दूसरों से प्रेम की मांग की जाती है. दुनिया तो लेन-देन पर चलती है इसलिए पहले प्रेम को दूसरे तक पहुँचाने का आयोजन किया जाता है. यह सब सोचा-समझा हुआ नहीं होता, अनजाने में ही होता चला जाता है. प्रेम पत्रों में कवियों और लेखकों के शब्दों का सहारा लिया जाता है. दूसरे के पास भी तो प्रेम का स्रोत भीतर छिपा है, उसे भी तलाश है. जीवन तब एक पहेली बन जाता है. 

Saturday, August 26, 2017

बीत रहा है पल-पल जीवन

२७ अगस्त २०१७ 
जीवन हर पल हमारे लिए चुनौतियाँ खड़ी करता है. यदि मन पल भर के लिए भी विचलित हो गया तो हम अपने मार्ग से च्युत हो जाते हैं. तभी तो कबीर कहते हैं, सत्य की राह तलवार की धार पर चलने के समान है. जिन आदर्शों को हम भीतर धारण करते हैं, यथार्थ की आंच पाते ही वे पिघलने लगते हैं, और हम फिर सामान्य बातों में उलझ जाते हैं और वह समय जो एक महत्वपूर्ण दिशा की और ले जाने का अवसर प्रदान कर सकने में सक्षम था, यूँही बीत जाता है. कितनी ही बार चलते-फिरते या किसी कार्य को करते समय मन में सहज स्फुरणायें उठती हैं, कुछ प्रेरणादायक वचन, कुछ योजनायें भीतर पनपती हैं. अल्प सा विचार करके जिन्हें कार्यान्वित किया जा सकता था परन्तु परिस्थितियों की हल्की सी भी असुविधा हमें पुनः अपने जीवन को यथावत चलते रहते देने के लिए पीछे ले जाने में सफल हो जाती है. प्रतिपल लक्ष्य की स्मृति बनी रहे तभी आत्मा का विकास सम्भव है.

Friday, August 25, 2017

अँधा अंधे ठेलिए दोनों कूप पडंत

२६ अगस्त २०१७ 
अंधश्रद्धा मानव को किस कदर विवेकहीन बना देती है इसका उदाहरण हरियाणा और पंजाब में हो रहे घटनाक्रम को देख कर मिल रहा है. राष्ट्र की सम्पत्ति को हानि पहुँचाने वाले इतना सा सच भी नहीं देख पा रहे हैं कि अंततः वे अपनी ही सम्पत्ति को नष्ट कर रहे हैं. जो साधना उनमें इतना सा भी विवेक जागृत नहीं कर सकी, उसका न होना ही अच्छा है. गुरू का काम है शिष्यों के जीवन से अज्ञान का अन्धकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये, किंतु आज तथाकथित गुरू लोगों की श्रद्धा का लाभ उठाकर अपने स्वार्थ के लिए उनका उपयोग करते हैं. आश्चर्य होता है जब पढ़े-लिखे लोग भी उनकी चाल में फंस जाते हैं. आज भारत के लिए कितना दुखद दिन है जब हिंसा और आगजनी की घटनाएँ एक अपराधी को बचाने के लिए हो रही हैं. सभी जागरूक लोगों को ऐसे अंधभक्तों से भारत को बचाना होगा. 

Thursday, August 24, 2017

गणपति बप्पा मोरया

२५ अगस्त २०१७ 
आज गणेश चतुर्थी है. भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि ! प्रथम पूजनीय गणपति को सम्मानित करने की तिथि ! गणेश सभी देवताओं में अग्र हैं, वे मूलाधार चक्र के अधिष्ठाता हैं, विघ्न विनाशक हैं. उनके जन्म और कर्म के साथ कितनी कथाएं जुड़ी हैं, जिनका गहरा आध्यात्मिक अर्थ संतजन बताते हैं. गणेश भक्तों को अपने लगते हैं, अपने परिवार के सदस्य की तरह उनकी घर-घर में तथा सार्वजनिक स्थानों पर स्थापना की जाती है. वैसे तो वर्ष भर ही किसी न किसी रूप में गणेश की पूजा होती है पर आज के दिन विशेष आयोजन होते हैं. वे ज्ञान और कुशलता के प्रदाता हैं. रिद्धि और सिद्धि को देने वाले हैं. गणेश तत्व का अर्थ है शुभता और सात्विक शक्ति से ओतप्रोत ज्ञान. जब शुभ और मंगल के दाता गणेश की पूजा करने वाला स्वयं भी उन गुणों को स्वयं में धारण करता है तभी सही अर्थों में  गणेश चतुर्थी का उत्सव सफल होता है.

Wednesday, August 23, 2017

श्रेष्ठता का चयन करे जो

२४ अगस्त २०१७ 
जीवन निरंतर गतिशील है. यदि गति ऊपर की ओर हो अर्थात उन्नतिशील हो तो सद्गति कहलाएगी और यदि नीचे की ओर हो पतनशील हो तो दुर्गति कहलाएगी. कोई भी एक स्थान पर बने नहीं रह सकता. शिशु बालक बन रहा है, यदि उसका लालन-पालन उचित नहीं हुआ तो वह निरंकुश बालक बन जायेगा. बालक को यदि उचित वातावरण नहीं मिला तो वह दिशाहीन किशोर बन सकता है. किशोरावस्था में मार्गदर्शन न मिलने के कारण कितने ही युवा बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं. इसके विपरीत यदि शिशु को पर्याप्त स्नेह और संस्कार से सिंचित किया जाता है तो वह आदर्श बालक व कुशाग्र किशोर बनकर समाज के लिए उदाहरण बन सकता है. भगवद गीता में कृष्ण कहते हैं, कोई व्यक्ति किसी भी स्थिति में हो यदि उस क्षण वह तय कर ले कि उच्च जीवन को अपनाना है, उसकी दिशा और दशा तत्क्षण बदलने लगती है. हर क्षण हमारे जीवन की दिशा का चुनाव हमारे ही हाथ में होता है. 

Tuesday, August 22, 2017

थम कर चलना जो सीखेगा

२३ अगस्त २०१७ 
इस जगत की कितनी सारी महत्वपूर्ण घटनाएँ अपने आप हो रही हैं, वायु बह रही है, श्वासें चल रही हैं, देह में रक्त का संचरण हो रहा है. जीवन का अनमोल उपहार हमें अकारण ही प्राप्त हुआ है. इसको सार्थक करना ही हमारा एकमात्र कर्त्तव्य है. जीवन अर्थपूर्ण तभी बनता है जब भीतर के शांति स्रोत का पता चल जाता है. जब तक कोई दुविधा है, जीवन एक संघर्ष ही नजर आता है. शांति का अनुभव करने के लिए ध्यान का अभ्यास अति आवश्यक है. जैसे कोई यात्री घंटों से चल रहा हो और एक वृक्ष की निर्मल छाया में पल भर को विश्राम करने के लिए रुक जाये. इस विश्राम के बाद चलने का उसका आनंद पहले से बढ़ जायेगा. इसी तरह सब कुछ छोड़कर कुछ पलों के लिए खाली होकर बैठ जाना और मन को देखते रहना चित्त को अनोखी विश्रांति से भर जाता है.


जब जीवन से परिचय होगा

२२ अगस्त २०१७ 
जीवन की कितनी ही परिभाषाएं कितने ही व्यक्तियों ने गढ़ी हैं लेकिन जीवन इनसे कहीं अधिक विराट है, वह कभी भी पूरा-पूरा इनमें नहीं समाता. हमारे ऋषियों ने जिस जीवन को जानने व पाने की प्रार्थना की है, वह अनंत है, असीम है और आनंद से भरा हुआ है. उस विशालता को महसूस करने के लिए उतना ही बड़ा दिल भी चाहिए, एक नया दृष्टिकोण भी चाहिए और साथ ही एक गहन आत्मीयता की भावना भी. यदि कोई एक प्रेमी की दृष्टि से इस सृष्टि को निहारता है तो वह धीरे से अपना घूँघट सरका देती है, रहस्य की एक परत खुलती है. यह सही है कि हजार परतें अब भी शेष हैं किन्तु जीवन के साथ एक नया संबंध बनने लगता है, जिसमें कोई भय नहीं है, कोई कामना भी नहीं है, यह केवल साथ होने का संबंध है. इसमें हर क्षण एक नयेपन की अनुभूति होती है क्योंकि सृष्टि पल-पल बदल रही है.

Monday, August 21, 2017

जग जैसा जब देखें वैसा

२१ अगस्त २०१७ 
प्रत्येक आत्मा में ज्ञान पाने की सहज कामना होती है, एक बच्चा भी जन्मते ही अपने आस-पास के वातावरण से परिचित होना चाहता है. ज्ञान इन्द्रियों तथा मन के रूप में हमें जानने के सुंदर साधन प्राप्त हुए हैं, जिनके माध्यम से हम जगत को जानते हैं. जानने के इस क्रम में हम जगत के बारे में कई धारणाएं अथवा मान्यताएं बना लेते हैं, जिनका कोई प्रमाण हमारे पास नहीं होता, जिसके कारण हमें कष्ट उठाना पड़ता है. यदि हमारे पास अपनी धारणा के पक्ष अथवा विपक्ष में कोई प्रमाण नहीं है, तो हम उस बात को न तो स्वीकार करें न ही अस्वीकार. उस स्थिति में हम तटस्थ रहकर ही स्वयं की रक्षा कर सकते हैं. इस जाननेवाले को जानने के लिए हमें इन साधनों को शुद्ध करने की  आवश्यकता है, मन जितना शुद्ध होगा उतना ही एकाग्र होगा. एकाग्र मन में जानने वाला यानि आत्मा अपने प्रतिबिम्ब को उसी तरह देख लेता है, जैसे शान्त झील में हम उसकी तलहटी को देख लेते हैं.  


Friday, August 18, 2017

विष भी जब अमृत बन जाये

१८ अगस्त २०१७ 
आकाश से जलधारा निरंतर बह रही है, मूसलाधार वर्षा हो रही है. धरती, पेड़-पौधे सब भीग रहे हैं, पंछी पत्तों में छुप गये हैं. कहाँ छिपा था यह नीर जो बादल बनकर बरस रहा है, क्या यह धरा से ही ऊपर नहीं उठा था. सागरों के ऊपर जब सूरज की किरणें छायी होंगी और उसे तप्त करके ऊपर उठा ले गयी होंगी, प्रकृति उस नमकीन जल को मीठा बनाकर फिर-फिर धरती को लौटा देती है. हमारा मन भी जब जगत के खारेपन को भीतर समा लेता है और उसे मृदु बनाकर लौटा देता है तो परमात्मा से जुड़ जाता है, अथवा कहें परमात्मा से जुड़कर ही ऐसा कर पाता है. हजार बूंदों के रूप में बारिश गीत गाती आ रही है. मन भी उस परमात्मा से जुड़कर अनंत भाव लुटा सकता है. उसके दामन में सब कुछ अनंत है. 

Thursday, August 17, 2017

सतरंगी यह जीवन सुंदर

१७ अगस्त २०१७ 
जीवन बहुआयामी है. विविधताओं से भरा है. प्रकाश की श्वेत किरण जैसे सात रंगों से बनी है, जीवन भी प्रेम, सुख, शांति, शक्ति, पवित्रता, आनंद और ज्ञान सप्त गुणों से ओतप्रोत है. इन गुणों का विकास ही साधक के लिए नित्य साधना है. प्रेम ही परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व को एक सूत्र में बाँधता है. सुख की तलाश विज्ञान को नई खोजें करने की प्रेरणा देती है. शांति के वातावरण में ही संगीत आदि कलाओं का सृजन सम्भव है. शक्तिशाली तन और मन ही बदलते हुए समय में स्वयं को स्वस्थ रख सकता है. जीवन जब मर्यादाओं में रहकर आगे बढ़ता है तो दो तटों के मध्य बहती धारा की तरह एक पवित्रता का निर्माण करता चलता है. यही पावनता दिव्यता को जन्म देती है जो आनंद के रूप में मानव के भीतर प्रस्फुटित होती है. हृदय जब आनंदित हो तो सहज ही ऐसा अंतर्ज्ञान उपजता है जिसको पाने के बाद  हर समस्या का समाधान मिलने लगता है.

Wednesday, August 16, 2017

अध्यात्म की डगर सुहानी

१६ अगस्त २०१७ 
जीवन प्रतिपल बांट रहा है. हजारों युगों से एक क्षण भी रुके बिना पवन का संचार हो रहा है. तेज गति से पृथ्वी सूर्य का परिभ्रमण कर रही है. सूर्य की रश्मियाँ नित नये प्राणियों को जन्माने में सहायक हैं. मानव के भीतर कल्पना और बुद्धिमत्ता के अद्भुत संयोग से नित नये अविष्कार हो रहे हैं. कला और विज्ञान की ऊंचाईयों को इस युग ने स्पर्श किया है. इतना सब कुछ होने पर भी अपने आस-पास देखने पर एक निराशा और अभाव का दर्शन होता है, जिसके लिए बढती हुई जनसंख्या तथा मानव का बढ़ता हुआ लोभ, आपसी मतभेद और सम्प्रदायों के नाम पर होती हुई हिंसा जैसे कुछ कारण गिनाये जा सकते हैं. अध्यात्म के पास इन सभी समस्याओं का इलाज है. अध्यात्म मानव को  मानव, प्रकृति तथा सम्पूर्ण सृष्टि से एकत्व की भावना का अनुभव कराता है. अध्यात्म आज के समय की मांग है.   

Monday, August 14, 2017

तू ही जाने तेरा राज

१४ अगस्त २०१७ 
परमात्मा हमारे द्वारा इस जगत में प्रतिपल कितना कुछ कर रहा है. श्वास जो भीतर अनवरत चल रही है, उसी के कारण है. रक्त जो निरंतर गतिशील है, प्रेम जो शिशु की आँखों में झलकता है. मन की गहराई में आगे ही आगे जाने की ललक भी तो किसी अनाम ग्रह से आती है. जगत सदा मिलता हुआ प्रतीत होता है पर कभी मिलता नहीं, क्योंकि जो आज मिला है वह प्रतिपल बदल रहा है. परमात्मा जो सदा दूर ही प्रतीत होता है, निकट से भी निकट रहता चला आता है. जो जीवन उसके बिना हो ही नहीं सकता, उसे भी वह अपनी खबर नहीं होने देता, उससे बड़ा रहस्य और क्या हो सकता है. बस इसी तथ्य को जो जान ले वह निर्भार हो जाता है.

Friday, August 11, 2017

अभी-अभी वह यहीं कहीं हैं

११ अगस्त २०१७ 
समय की धारा प्रतिपल अविरत गति से आगे बढ़ती जा रही है. यह पल जो अभी-अभी उगा था खो गया है. पलक झपकते ही पल खो जाता है. संत कहते हैं जो इस पल में जाग गया, वह जिंदगी से उसी तरह मिल सकता है जैसे कोई प्रेम के क्षणों में अपने प्रिय से मिलता है. जब किसी के निकट होना ही पर्याप्त होता है, उससे कुछ पाने के लिए नहीं बल्कि उस क्षण को साथ-साथ जीने के लिए, उसी तरह समय के एक नन्हे पल के पीछे छिपे अनंत से मिलना होता है. परमात्मा की मौजूदगी का अनुभव सदा ही एक क्षण में होगा, वह क्षण कौन सा होगा यह कोई नहीं कह सकता पर जिसने कभी क्षण में ठहरना नहीं सीखा वह उस पल को भी खो देगा. 

Tuesday, August 8, 2017

खाली मन ही टिके योग में

८ अगस्त २०१७ 
योग का एक अर्थ है कर्मों को इस कुशलता से करना कि कर्म के बाद न तो पश्चाताप रह जाये कि इससे अच्छा कर सकते थे न ही कोई आशंका ही शेष रहे कि पता नहीं इस कर्म का फल कैसा होगा. कर्म करने के पूर्व जिस सहज स्थिति में मन था उसी में बाद में भी रहे तो  कर्मयोग सिद्ध हो जाता है. अपरिग्रह योग की साधना में अति आवश्यक यम है. अपरिग्रह का शाब्दिक अर्थ है अनावश्यक संग्रह न करना, यह संग्रह वस्तुओं का हो सकता है, संबंधों का हो सकता है और विचारों का भी हो सकता है. व्यक्ति, वस्तु या विचार के प्रति आसक्ति या मोह की भावना ही परिग्रह है, जो दुख का कारण है. परिग्रह कृपणता को जन्म देता है और अपरिग्रह साधक को उदार बनाता है. मन यदि व्यर्थ के विचारों से भरा हुआ है तो चिंता और दुःख से कैसे बचा जा सकता है. योग की साधना करते-करते जब मन व्यर्थ तथा क्लिष्ट संस्कारों से मुक्त हो जाता है तो सहज ही अपरिग्रह सधने लगता है.

Monday, August 7, 2017

यह राखी बंधन है ऐसा

७ अगस्त २०१७ 
रक्षा बंधन का अर्थ है अपनी सहज स्वीकृति और प्रेम से अन्य की रक्षा का वचन देकर उससे बंध जाना. यह प्रेम का ऐसा अनोखा बंधन है जिसमें बाँधने वाला और बंधने वाला दोनों स्वयं को धन्य अनुभव करते हैं. हमारे पुराणों में भी इस उत्सव का उल्लेख है, अर्थात इसकी परंपरा अत्यंत प्राचीन है. पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्वप्रथम इन्द्राणी ने अपने पति की रक्षा के लिए मन्त्रों से सिद्ध सूत्र बाँधा था. द्रौपदी ने कृष्ण को और लक्ष्मी ने राजा बलि को भी रक्षा सूत्र बाँधा था. पहले-पहल ब्राह्मण भी अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बाँधते थे. एक दूसरे के सम्मान की रक्षा के लिए इस सूत्र को बाँधा जाता था. कालांतर में यह भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा. राखी का यह धागा मर्यादा का प्रतीक तो है ही, संकल्प की दृढ़ता का प्रतीक है और साथ ही समाज में सभी की समानता और भाईचारे का प्रतीक भी है. 

Friday, August 4, 2017

निज श्रम से ही भाग्य बनेगा

५ अगस्त २०१७ 
योग शब्द का एक अर्थ है जुड़ना अथवा जोड़ना. पहले देह को मन से फिर मन को आत्मा से और अंत में परमात्मा से जोड़ना है. आत्मा बीज रूप में सबके भीतर है पर योग द्वारा ही उस तक पहुंचा जा सकता है. इसके लिए मन की धरती पर उस बीज को बोकर साधना के जल से सींचा जाता है. अपनी-अपनी रूचि के अनुसार कोई भक्ति से, कोई ज्ञान से तथा कोई निष्काम कर्म से इस पौधे को बड़ा करता है. तीसरे यम ‘अस्तेय’ का पालन सभी के लिए आवश्यक है. ‘अस्तेय’ का शाब्दिक अर्थ है चोरी न करना. चोरी शब्द का यहाँ बहुत व्यापक अर्थ है, किसी की अनुपस्थिति में उसकी वस्तु का उपयोग भी चोरी ही कहा जायेगा. कम श्रम के बदले अधिक धन की लालसा, कर्तव्यों से पीछे हटना, व्यापार में ज्यादा मुनाफा कमाना, दूसरों के विचारों की चोरी भी स्तेय में आएगा. यदि मन में कहीं भी चोरी का संस्कार है, तो वह अन्यों के प्रति संदेह भी जगाता है. साधक को मन की निर्मलता के लिए किसी भी रूप में बिना अर्जित की हुई वस्तु का लोभ नहीं रखना चाहिए. 

Thursday, August 3, 2017

अहिंसा परमो धर्मः

४ अगस्त २०१७ 
एक बार यदि साधक यह निर्णय ले लेता है कि उसे योग मार्ग पर आगे बढ़ना है, जीवन के परम लक्ष्य को पाना है अर्थात सर्वदुखों से सर्वकाल के लिए मुक्त होना है तो तत्क्षण उसे साधना आरम्भ कर देनी चाहिए. चाहे आधा घंटा ही की जाये, प्रतिदिन नियमित की गयी साधना फल देने लगती है. भूतकाल में किसी न किसी को दुःख दिया होगा, मन ही मन उससे क्षमा मांगकर भविष्य में किसी को कोई दुःख नहीं देना है अर्थात अहिंसा के पालन का व्रत भी ले लेना चाहिए. क्रोध हिंसा का ही एक रूप है. दोष दृष्टि भी हिंसा है. मन में क्षोभ का भाव जगे अथवा द्वेष का ये सभी हिंसा हैं. मन को शांत रखने के लिए अहिंसा का पालन अति आवश्यक है.


Wednesday, August 2, 2017

सांच बराबर तप नहीं

३ अगस्त २०१७ 
योग के साधक को आसन व प्राणायाम के साथ-साथ यम व नियम का पालन करना नहीं भूलना चाहिए. योग का अंतिम लक्ष्य मुक्ति की प्राप्ति है, जिसका अर्थ है सर्वदुखों से मुक्ति. जो मन के विकारों से मुक्त हुए बिना सम्भव ही नहीं है. यम और नियम मन को शुद्ध करने के उपाय हैं, सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य, ये पांच यम हैं तथा शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वरप्रणिधान ये पांच नियम हैं. सत्य के पालन करने का अर्थ है मनसा और वाचा में समता. जो मन में है वही वाणी से उजागर होने लगे तो साधक सत्य के निकट पहुँचने लगता है. किसी की कही बात को ज्यों की त्यों कहना, उसमें अपनी ओर से जरा भी फेर-बदल न करना, वस्तुओं, व्यक्तियों और परिस्थितयों को जैसी वे हैं वैसा ही देखना भी सत्य व्यवहार कहा जाता है. अपने लाभ के लिए असत्य का सहारा लेने वाला तो सत्य से बहुत दूर है.