२९ अगस्त २०१७
बसंत और बहार की ऋतु
में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है, इसका कारण है कि पेड़-पौधे व वृक्ष अपनी
मंजिल पर पहुँच जाते हैं, अर्थात खिल जाते हैं. हमारा मन भी जिस दिन अपनी मंजिल को
छू भर लेगा, उसका मौसम भी बदल जायेगा. अभी मन को तलाश है, वह कुछ पाना चाहता है,
तभी दिन-रात किसी न किसी उधेड़-बुन में लगा रहता है. मन की कली अभी बंद है, भीतर ही
भीतर सुगबुगा रही है, कोई स्पर्श उसे जगा सकता है. कोई पुकार उसे खिला सकती है.
कोई कृपा उसे मुक्त कर सकती है. यह सब हो सकता है यदि मन यह मान ले कि वह अभी खिला
नहीं है, कि अभी उसे बहार मिली नहीं है, और मन जिस राह पर अब तक चलता आया है उस
मार्ग पर तो वह खिल नहीं सकता. मन को खिलने के लिए कोई श्रम नहीं करना है, बस अपने
आप में ठहरना है, आखिर कली क्या करती है फूल बनने के लिए, बस स्वयं को धूप और हवा
के आश्रय में छोड़ देती है.
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