Wednesday, June 29, 2016

उसका हाथ सदा है सिर पर

२९जून २०१६ 
परमात्मा जीवन में कितने अनजाने रस्तों से प्रवेश करता है, हम इसका अनुमान भी नहीं कर सकते. माता-पिता बच्चे की सुरक्षा के लिए कोई कसर नहीं रखते, वैसे ही वह परमात्मा कदम-कदम पर सहायता करता है. जीवन में आने वाली हर चुनौती एक उपहार देती है. कितनी ही बाधाएँ आयें, आत्मा की शक्ति घटती नहीं, वह नये-नये कर्मों का फल भोगती है और नये अनुभव प्राप्त करती है. आत्मा में ज्ञान है और वही उसे पथ से भटकने नहीं देता.  

Monday, June 27, 2016

हुकुम रजाई चालिए

२८ जून २०१६ 
हमारे जीवन में आने वाला दुःख इस बात का सूचक है कि हम ऋत के नियम के प्रतिकूल चल रहे थे. हम दुःख को मिटाने का प्रयास तो करते हैं पर नियम के अनुसार नहीं चलते. यदि हमें लगता है किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के कारण हमें दुःख है तो कारण वह व्यक्ति नहीं है बल्कि एक स्वतंत्र आत्मा पर अधिकार जताने का हमारा व्यर्थ प्रयास ही है, न ही वह वस्तु, सम्भवतः उसका सही उपयोग करना हमें नहीं आता, न ही कोई परिस्थिति हमारी मन:स्थिति को तब तक प्रभावित कर सकती है जब तक हम उसे अनुमति न दें. यदि कोई कार्य ऋत के अनुकूल है तो उससे सुख ही उत्पन्न होगा. प्रभाव या अभाव से मुक्त होकर स्वभाव में रहना ही ऋत का नियम है. 

पूर्ण: मद: पूर्ण: मिदं

२७ जून २०१६ 
ऋषियों ने गाया है परमात्मा पूर्ण है, उस पूर्ण से निकला जगत भी पूर्ण है. हर चेतना मूल रूप में अपने आप में पूर्ण है. एक बीज प्रकृति की हर बाधा को पार करता हुआ जगत में अपनी सत्ता को प्रकट करता है. एक शिशु भी बिना कुछ सिखाये ही प्रेम और शक्ति का प्रदर्शन करता है. कितना अच्छा हो हर व्यक्ति को अपनी निजता में जीने का अधिकार मिले, किसी से किसी की तुलना न हो, प्रतिस्पर्धा न हो. इस स्थिति में क्या सहज ही मानव तनाव और हर तरह के दबाव से स्वयं को मुक्त नहीं पायेगा.

Saturday, June 25, 2016

आगे ही आगे जाना है

२६जून २०१६ 
जीवन में हमें जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है और जिन लोगों के सम्पर्क में हम आते हैं वे सभी परिस्थितियाँ और लोग किसी न किसी रूप में हमें विकसित करने के लिए उत्सुक हैं. उनके प्रति हमारा रवैया ही इस बात को तय करेगा कि हम इस अवसर का लाभ उठा रहे हैं अथवा इससे स्वयं की हानि कर रहे हैं. आत्मा की उन्नति अथवा अवनति की सौ प्रतिशत जिम्मेदारी उसकी स्वयं की होती है. बाहरी रूप से परिस्थिति चाहे कैसी हो, किन्तु भीतर से हमारी प्रतिक्रिया कैसी रही, कर्म का फल इसी बात से मिलता है. 

Friday, June 24, 2016

खोलें दिल का द्वार

२४ जून २०१६  
हम जीवन में जो चाहते हैं वह पा सकते हैं बशर्ते हमें यह स्पष्ट हो कि हम चाहते क्या हैं ? स्वयं को जाने बिना हम यह जान ही नहीं पाते कि हमारी वास्तविक मांग क्या है, और स्वयं हुए बिना स्वयं को जाना नहीं जा सकता. स्वयं होने के लिए हृदय का द्वार खटखटाना होगा. बुद्धि पर भरोसा छोड़कर भाव जगत में प्रवेश करना होगा. कुछ पलों के लिए हानि-लाभ की भाषा त्यागकर जीवन को उसके सच्चे स्वरूप में जानना होगा.