Monday, August 31, 2015

भीतर सुख का घर है


आत्मा ज्ञाता और द्रष्टा है, मन मननशील है, बुद्धि विचारती है, अहंकार इन सबका सेहरा अपने सर ले लेता है और स्वयं को ही कर्ता-धर्ता मानता है. आत्मा तक अभी मन, बुद्धि की पहुंच नहीं है सो वे अहंकार को ही अपना स्वामी मानते हैं. अहंकार का स्वभाव ही है नकारात्मक, सो जीवन से अशांति कभी जाती नहीं. उपाय क्या है ? आत्मा तक पहुंचकर उसे अपना स्वामी मानना ही एकमात्र उपाय है, आत्मा स्वभाव से ही सकारात्मक है, सुख और शांति का स्रोत है, मन व बुद्धि उससे मिलकर स्वतः ही आशा और विश्वास से भर जाते हैं.

Friday, August 28, 2015

प्रार्थना जब जगेगी भीतर


प्रार्थना में अपार शक्ति है, प्रार्थना हमें विनीत बनाती है, हमारी भीतरी अभीप्सा से रूबरू कराती है. हम अपने भीतर उतर कर जब टटोलते हैं कि आखिर हम चाहते क्या हैं, तब ही प्रार्थना का जन्म होता है. प्रार्थना जब अपने आप जगती है, तब पूरी भी अपने आप होती है. अंतर जब पवित्रता का अनुभव करता हो तब जो प्रार्थना जन्मेगी वह हमें लक्ष्य तक ले ही जाएगी. जब अंतर प्रतिस्पर्धा से मुक्त हो तब सहज ही जो पुकार उठती है भीतर वही मुक्त करती है. 

Thursday, August 27, 2015

वही जीवन का सार है


जो एक रस है, अपार है, सदा साथ है. जो जागृत है, प्रेममय है, सदा सुख है. जो सहज है, सदा पुकार दे रहा है, सच्चा मित्र है, वही जीवन में बहार है. जो सदा खुला हुआ द्वार है, सबको समो लेता है, जिसके बिना जीवन असार है. वही जीवन का आधार है.

Wednesday, August 26, 2015

खुद में ही खुद को पाना है


जो नहीं है उससे हम भयभीत रहते हैं, जो सदा है उससे अनभिज्ञ ही बने रहते हैं. सारा जीवन निकल जाता है पर चेतना का स्पर्श नहीं हो पाता, और मन जो होकर भी नहीं है हमें भगाता रहता है. इसीलिए मन रूपी संसार को शंकर माया कहते हैं. मन अँधेरे की तरह है, जिसका आरम्भ कब से है पता नहीं, पर प्रकाश जलते ही उसका अंत हो सकता है, आत्मा सदा से है उसका अंत नहीं होता. आखिर हम आत्मा से अपरिचित क्यों रहते हैं, क्योंकि हम पल भर भी खुद में टिककर नहीं बैठते. 

Monday, August 24, 2015

सोम वही है वरुण है जो


वेदों में कितनी सुंदर स्तुतियाँ और प्रार्थनाएं की गयी हैं. एक मन्त्र में ऋषि कहते हैं परमात्मा हर ओर से मानव की सुरक्षा करता है. प्राची दिशा में वही अग्नि बनकर उसका मार्ग प्रशस्त करता है, उसे आगे ही आगे बढने को प्रेरित करता है. पश्चिम में वही वरुण रूप में उसे पाप से बचाता है, अर्थात रक्षा करता है. दक्षिण दिशा में परमात्मा इंद्र बनकर बल प्रदान करता है. उत्तर में सोम बनकर शांतिप्रदाता है. ऊपर की दिशा में वह बृहस्पति बनकर ऊपर उठाता है. नीचे की दिशा में वह विष्णु बनकर हमें आधार प्रदान करता है. परमात्मा हर तरफ से आत्मा को घेरे हुए है. 

Friday, August 21, 2015

जगा रहे मन घड़ी-घड़ी


जीवन को गहराई से महसूस करना हो तो वर्तमान के क्षण में ही किया जा सकता है, पर हम न  जाने कितना समय अतीत की स्मृतियों और भविष्य की कल्पनाओं में खो देते हैं. रात्रि को स्वप्न देखना स्वाभाविक है पर जागते हुए भी भीतर जो विचार की धारा चलती रहती है वह स्वप्न ही है, संत जन तभी कहते हैं हम जागते हुए भी सोये हैं. जिस क्षण हम भोजन कर रहे हैं, मन कहीं और है, स्वप्न चल रहा है, ऊर्जा व्यर्थ ही बही जा रही है, जिस समय किसी से वार्तालाप कर रहे हैं, भीतर एक अन्य बातचीत चल रही है, अर्थात हम जहाँ होते हैं अक्सर वहाँ नहीं होते, इसी कारण मन थक जाता है. संतजन प्रफ्फुलित रह पाते हैं क्योंकि उन्होंने इस राज को जान लिया है, वह निरंतर ऊर्जा के प्रवाह को बनाये रखते हैं. 

Thursday, August 20, 2015

उसकी ओर जरा मुड़ देखें


वह परम चैतन्य जो इस सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, जो ऋत है, नियम है, आनन्दमय है, नित है, ज्ञानमय है. सब प्राणियों को जानने वाला है. वह अगोचर है पर उसी के द्वारा देखा जाता है, उसी के द्वारा सुना जाता है, वह ईश्वर हर आत्मा को अपनी ओर उन्मुख करना चाहता है, कभी सुख कभी दुःख के द्वारा वह हमें सजग करता है. उसके प्रति जागरूक होना ही साधना का फल है. 

Wednesday, August 19, 2015

बढ़ती रहे ऊर्जा प्रतिपल


हमारे हर कृत्य का चाहे वह मनसा हो, वाचा या कर्मणा हो, हमारी आत्मा पर, ऊर्जा पर असर पड़ता है. यह असर दो तरह का हो सकता है पहला उसे भरपूर करने वाला दूसरा उसे रिक्त करने वाला. किसी भी तरह का नकारात्मक भाव ऊर्जा का हनन करता है, सात्विकता उसे समृद्ध करती है. इसका अर्थ हुआ कि व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति यदि हमारे विपरीत भी प्रतीत होती हो यदि हम उसे स्वीकार लेते हैं और मन को नकार से नहीं भरते, ऊर्जा बढती है और यदि सब कुछ हमारे अनुकूल भी हो पर हमरा रवैया यदि हर जगह दोष देखने वाला हुआ तो ऊर्जा घटती है. ऊर्जा की कमी ही किसी भी तरह के रोग का कारण होती है.

Monday, August 17, 2015

एक हास्य भीतर से प्रकटे


हमें अपना वास्तविक परिचय मिल जाये तो एक पल में सारी उलझन मिट सकती है. उलझन है क्या ? यही न कि हम स्वयं को अन्यों से बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं, हम कुछ करके दिखाना चाहते हैं, हम हर पल सुखी रहना चाहते हैं, पर यह हो नहीं पाता. हजारों हमारे आगे हैं हजारों हमारे पीछे हैं, कितना भी कर लें मन की गगरी खाली रहती है, सुख की तलाश में दुःख ही हम अपनी झोली में भरे जाते हैं. तो उपाय यही है कि हम खुद को जानें, ध्यान की विधि सीखें, अपने मन को भीतर ले जाएँ और जानें कि एक अनंत प्रेम, शांति और सुख का खजाना भीतर छिपा है. जिस घड़ी यह सत्य प्रकट होता है एक निर्दोष हास्य फूट पड़ता है और एक ऐसी मुस्कान का उपहार हमें मिल जाता है जो बाहर की किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होती. 

खाली ही भरा जाता है


इच्छा पूरी न हो तो दुःख होता है पर पूरी होने पर राग जगता है, जो नई कामना को जन्म देता है. इस तरह सारा जीवन बीत जाता है, सर्वोत्तम यही है कि इच्छा उठते ही हम उसे समर्पित कर दें, इससे मन खाली रहेगा, खाली मन में ही आत्मा की झलक मिलती है. जैसे घड़े से जल निकाल दें तो उसका मूल आकाश स्वयंमेव भर जाता है वैसे ही मन का मूल आत्मा है और आत्मा का मूल परमात्मा है, जो प्रेम स्वरूप है, उसका प्रेम भीतर भर जाये तो जीवन उत्सव बन जाता है. यह तो वह हीरा है जिसे असली जौहरी ही पहचान सकता है. जो भीतर से भर जाता है उसे भरने के लिए संसार की निधियां नहीं चाहिए. वह सहज ही संसार में जीना सीख जाता है.

Tuesday, August 4, 2015

सुख सपना दुःख बुलबुला


प्रारब्ध वश सुख-दुःख तो हमें मिलने ही वाले हैं, सुख आने पर यदि अभिमान आ गया तो नया कर्म बना लिया जिसका फल भविष्य में दुःख रूप में आएगा, दुःख आने पर यदि दुखी हो गये तो भी नया बीज डाल दिया जिसका परिणाम दुख आने ही वाला है. साधक को चाहिए कि दोनों ही स्थितियों में सम रहे, वे जैसे आये हैं वैसे ही चले जायेंगे, नया कर्म बंधेगा नहीं, वर्तमान भी सुधर गया और भविष्य भी. समता का अभ्यास नियमित ‘ध्यान’ करके किया जा सकता है. 

Monday, August 3, 2015

हीरा जनम अमोल है


जीवन परमात्मा का दिया सुंदर उपहार है, इसको हम कितनी ही बार सुनते हैं और पढ़ते हैं, पर हम इस बात की ओर ध्यान ही नहीं देते कि हमने उपहार को खोला ही नहीं है, हम गिफ्ट रैप में ही उलझे हैं, देह तो बाहरी आवरण है, रंगीन रिबनों से सजा हुआ, और मन वह डिब्बा है जिसके भीतर उपहार है. हम उन्हीं में उलझ जाते हैं और असली हीरा जो भीतर है, उसकी तरफ ध्यान ही नहीं जाता.   

Sunday, August 2, 2015

स्वतन्त्रता परम है

साधक को अपने आस-पास ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा, जिसमें हर कोई पूर्ण स्वतन्त्रता का अनुभव करते हुए अपने दिल की बात बिना किसी झिझक के कह सके, कुछ करना चाहे तो कर सके. जहाँ किसी भी तरह की तुलना या महत्वाकांक्षा से जीवन का सहज आनंद बाधित न हो. जीवन चाहे कितना भी संघर्ष पूर्ण हो, हरेक को अपने भीतर के आनंद को अनुभव करने का अवसर मिले, सुविधा मिले. जीवन इतना अनमोल है कि उसे साधारण बातों में खोया नहीं जा सकता.