Monday, August 17, 2015

एक हास्य भीतर से प्रकटे


हमें अपना वास्तविक परिचय मिल जाये तो एक पल में सारी उलझन मिट सकती है. उलझन है क्या ? यही न कि हम स्वयं को अन्यों से बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं, हम कुछ करके दिखाना चाहते हैं, हम हर पल सुखी रहना चाहते हैं, पर यह हो नहीं पाता. हजारों हमारे आगे हैं हजारों हमारे पीछे हैं, कितना भी कर लें मन की गगरी खाली रहती है, सुख की तलाश में दुःख ही हम अपनी झोली में भरे जाते हैं. तो उपाय यही है कि हम खुद को जानें, ध्यान की विधि सीखें, अपने मन को भीतर ले जाएँ और जानें कि एक अनंत प्रेम, शांति और सुख का खजाना भीतर छिपा है. जिस घड़ी यह सत्य प्रकट होता है एक निर्दोष हास्य फूट पड़ता है और एक ऐसी मुस्कान का उपहार हमें मिल जाता है जो बाहर की किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होती. 

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