Wednesday, August 31, 2022

नए माह में नया जोश हो

नया महीना यानि नए वायदे करने का वक्त, नए संकल्प करने, नयी चुनौतियाँ लेने, नई ख़ुशियाँ पाने और लुटाने का वक्त है।सितम्बर का पहला सप्ताह पोषण को समर्पित है और पहला पखवाड़ा हिंदी को। विभिन्न अन्न देह का पोषण करते हैं और भाषा मन व आत्मा का। भोजन में ज्वार, बाजरा व जौ आदि मोटे अनाज को सम्मिलित करके और नियमित व्यायाम के द्वारा हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं। हिंदी के विकास के लिए हमारा कर्तव्य है कि इसे अधिक से अधिक व्यवहार में लाएँ, इसकी शुद्धता का भी ध्यान रखें। हिंदी साहित्य का प्रचार व प्रसार करें। अन्य भाषाओं से हिंदी में अनुवाद हो और इसका विपरीत भी, ताकि सभी हिंदी के महत्व व इसकी क्षमता को अनुभव कर सकें। इसी महीने शिक्षक दिवस भी मनाया जाएगा। इसी महीने इंजीनियर दिवस व हृदय दिवस भी आते हैं तथा विश्व शांति दिवस भी। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन गणपति का विसर्जन होगा व अगले दिन से पितृ पक्ष आरम्भ हो जाएगा। सितम्बर के अंतिम सप्ताह में नवरात्रि का उत्सव भी आरम्भ हो रहा है।आने वाला हर दिन सभी देशवासियों के लिए तथा विश्व के हर वासी के लिए मंगलकारी हो।

Friday, August 26, 2022

जीवन रंगमंच है सुंदर

 “मैं कौन हूँ” इस प्रश्न का जवाब खोजे नहीं मिलता. बुल्लेशाह तभी कहते हैं, बुल्लाह, की जाना मैं कौन ? हम किताबें पढ़ते हैं, शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, संतों की वाणी सुनते हैं, पर यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाता है. बाहर संसार है भीतर विचार है, ध्यान की गहराई में जाएँ तो वहाँ कुछ भी नहीं, पूछने वाला ही नहीं रहा, यदि पूछने वाला है तो ध्यान घटा ही नहीं. जहाँ कुछ नहीं रहता वहाँ परमात्मा है, और परमात्मा ने अखंड मौन धारण किया हुआ है. वास्तव में प्रकृति और परमात्मा के इस खेल में ‘मैं’ तभी तक है, जब तक अज्ञान है, अर्थात जब तक खोज शुरू ही नहीं हुई. देह और मन से परे ‘मैं’ एक अविनाशी सत्ता है, इसका ज्ञान होने पर ही पता चलता है, कि वहाँ कुछ भी नहीं है. जीवन तब एक खेल या नाटक ही प्रतीत होता है.

Tuesday, August 23, 2022

इस पल में जो जाग गया

 जीवन का हर नया पल एक उपहार की तरह हमें मिलता है. हम पुराने उपहार की मीनमेख निकालने में लगे रहते हैं या तो अब न जाने कौन सा उपहार मिलेगा इसकी  चिंता में इस पल के उपहार को खोलना ही भूल जाते हैं. इस तरह वर्तमान सदा ही अतीत के पश्चाताप या भविष्य के भय का शिकार बनता रहता है. जो भी खुशी है वह इस क्षण में मिलती है, सुख की हर स्मृति बीते कल की छाया है. भविष्य की कल्पना कितनी भी सुखद हो वह वास्तविक नहीं है. वह चित्र की नदी की तरह प्यास नहीं बुझाती. शुद्ध, निर्दोष, वास्तविक सुख केवल वर्तमान में बिना किसी कीमत के सहज ही बंट रहा है, जिसकी सबको तलाश है. खेल, खतरे भरे कार्यो में, प्रेम में हम वर्तमान में होते हैं, तभी ख़ुशी का अनुभव होता है. केवल ध्यानी व्यक्ति सदा ही वर्तमान में रह सकता है. 

Tuesday, August 16, 2022

कर्त्तव्यों का जिसे भान रहे

 किसी भी राष्ट्र को विकास के पथ पर आगे ले जाने के लिए केवल सरकार ज़िम्मेदार नहीं होती, उसके नागरिकों का योगदान भी उसमें बहुत प्रमुख भूमिका निभाता है। एक बार यदि बहुमत से कोई सरकार चुन ली जाती है तो उसकी नीतियों को ज़मीनी स्तर पर उतारने के लिए जनता की भागीदारी की अत्यंत आवश्यकता है। संविधान में भारतीय नागरिक के मूल कर्तव्यों की चर्चा की  गयी है। हर नागरिक को उसका ज्ञान होना आवश्यक है. स्वच्छता अभियान पर सरकार चाहे करोड़ों रुपया खर्च करे, यदि देशवासी अपने आसपास गंदगी फैलाते रहेंगे, वन, झील, नदियों को दूषित करेंगे तो स्वच्छ भारत का स्वप्न कभी पूरा नहीं हो सकता। हर गाँव में सरकारी स्कूल खोले जाएँ पर लोग अपने बच्चों को पढ़ने न भेजें तो संविधान की अवहेलना होती है। हमारी प्राचीन धरोहरों  का सम्मान न करके यदि कोई उन्हें हानि पहुँचाए तो हम अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं कर रहे। जल का सरंक्षण हो या ऊर्जा का, जनता को इसमें आगे आकर सम्मिलित होना होगा। सामाजिक कुरीतियों और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ने में भी आम आदमी को आगे आना होगा। यदि भारत का हर नागरिक सजग होकर हर प्रकार के उत्कर्ष को ही अपना ध्येय बनाएगा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत विकसित देशों के साथ खड़ा होगा। 

Monday, August 8, 2022

उसकी चाह जगे जब मन में

 हमने इस जगत में अपने चारों ओर कुछ लोगों को वस्तुओं का गुलाम बनकर दुखी होते हुए तथा कुछ सजग व्यक्तियों को अकिंचन होकर भी प्रसन्न रहते हुए देखा है. वास्तविकता को भूले हुए कुछ लोग अपनी आवश्यकता से अधिक सामान इकट्ठा करते रहते हैं, फिर उसकी साज-संभार में अपनी ऊर्जा को व्यर्थ गंवाते हैं. हमारी ऊर्जा का उपयोग स्वयं को तथा स्वयं के इर्दगिर्द का वातावरण संवारने में होता रहे, तभी उसकी सार्थकता है. इसके लिए हमें समझना होगा कि आवश्यकता तथा इच्छा में अंतर है, इच्छाओं का कोई अंत नहीं पर आवश्कताएं सीमित हैं. आवश्यकता की पूर्ति होती है, उसकी निवृत्ति विचार द्वारा नहीं हो सकती पर इच्छा की निवृत्ति हो सकती है.अपनी इच्छाओं को पूरा करने के प्रयास में हम अपनी सहज आवश्यकता को भी भुला बैठते हैं.परमात्मा प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होने वाली इच्छा है, पर संसार प्राप्ति की इच्छा कभी पूर्ण नहीं हो सकती. ईश्वर प्राप्ति की इच्छा वास्तव में हमारी आवश्यकता है, हर जीव आनंद चाहता है, क्योंकि वह ईश्वर का अंश है, उसमें अपने अंशी से मिलने की जो स्वाभाविक चाह है, वह उसकी नितांत आवश्यकता है. जैसे भूख, प्यास आदि आवश्यकताओं की पूर्ति भोजन, जल आदि से हम करते हैं, वैसे ही हमारी आनन्द प्राप्ति की आवश्यकता की पूर्ति ईश्वर प्राप्ति के बाद ही होती है. 

Monday, August 1, 2022

पल-पल जीना सीखा जिसने


पानी पर खिंची लकीर की तरह मन में कोई भाव जगे और विलीन हो जाए तो उसके संस्कार नहीं पड़ते। बच्चों का हृदय ऐसा ही होता है, उन्हें रोते-रोते हँसते देर नहीं लगती, उनका अहंकार अभी मज़बूत नहीं हुआ है, बातों को पकड़कर रखने की अभी उन्हें जानकारी नहीं है। अहंकारी मन घटनाओं को पकड़ लेता है और वे उस पर गहरे प्रभाव डालती हैं। जीवनमुक्त पल पल में जीता है। हर क्षण उसके लिए नया अनुभव ला रहा है। प्रकृति भी नित नूतन है इसलिए  उसमें सौंदर्य है। कोई भी बात जब भावनाओं को प्रभावित न कर सके तब मानना चाहिए कि अपने स्वरूप में स्थिति दृढ़ हो गयी है।