२८ जून २०१६
हमारे जीवन
में आने वाला दुःख इस बात का सूचक है कि हम ऋत के नियम के प्रतिकूल चल रहे थे. हम
दुःख को मिटाने का प्रयास तो करते हैं पर नियम के अनुसार नहीं चलते. यदि हमें लगता
है किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति के कारण हमें दुःख है तो कारण वह व्यक्ति नहीं
है बल्कि एक स्वतंत्र आत्मा पर अधिकार जताने का हमारा व्यर्थ प्रयास ही है, न ही
वह वस्तु, सम्भवतः उसका सही उपयोग करना हमें नहीं आता, न ही कोई परिस्थिति हमारी
मन:स्थिति को तब तक प्रभावित कर सकती है जब तक हम उसे अनुमति न दें. यदि कोई कार्य
ऋत के अनुकूल है तो उससे सुख ही उत्पन्न होगा. प्रभाव या अभाव से मुक्त होकर स्वभाव में
रहना ही ऋत का नियम है.
आप बिल्कुल सही कह रही हैं अनिता जी ! अब हमें प्रकृति की आवाज़ को सुन लेना चाहिए ।
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