Sunday, December 26, 2021

सहनशील चेतना हो जिसकी

जीवन क्या है ? क्या निरंतर कुछ न कुछ अनुभव करते रहने की ललक का ही दूसरा नाम जीवन नहीं है। शिशु के जन्म लेते ही यह प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। जब तक देहाध्यास  नहीं छूटता, इंद्रियों से अनुभव लेने की कामना का नाश नहीं होता। हर नए प्रातः में हमारा पदार्पण यदि सजगता पूर्ण हो तो इन अनुभवों को ग्रहण करते हुए भी जीवन के मूल्यों को हम किसी भी क्षण विस्मृत नहीं करेंगे। हमारा अंतर स्वप्नशील हो जिसमें एक शिव संकल्प जलता रहे जो सदा प्रेरित करे। राह में यदि कांटे हों, अनदेखा करके कोई खुद को बचा कर निकल जाता है, पर संवेदनशील कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा वही अपनी चेतना को विकसित कर सकता है, नित नया सृजन करता है. जैसे प्रकृति नित नई है, यदि मन हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे। यह अनादि सत्य है कि सनातन मूल्यों को पकड़ कर ही नया सृजन होता है, वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर ही नया फूल खिलता है.


9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 28 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(28-12-21) को मेहमान कुछ दिन का अब साल है"(चर्चा अंक4292)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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