१ सितम्बर २०१८
कृष्ण का अर्थ है जो
आकर्षित करता है, कृष्ण छोटे-बड़े, नर-नारी, पशु-पंछी सभी के मन को मोहता है. कृष्ण
शुद्ध निर्विकार प्रेममयी आत्मा का प्रतीक है. उपनिषद में ऋषि कहते हैं, पुत्र
पुत्र के लिए प्रिय नहीं होता आत्मा के लिए प्रिय होता है. इसी लिए कृष्ण हर किसी
का प्रिय है. उसे किसी भी संबंध में बांधें वह बंधने के लिए तैयार है, वह पुत्र
है, भाई है, मित्र है, सखा है, प्रेमी है, शिक्षक है, गुरू है, सेवक है, स्वामी
है, राजा है, सारथि है. वह ज्ञानी है, योगी है, अपने भक्तों का भक्त भी है. उसे गौएँ
चाहती हैं, मोर उसके इशारों पर नाचते हैं, हिरण उसकी वंशी की धुन सुनकर ठहर जाते
हैं, यमुना का नीर बहना भूल जाता है, गोवर्धन थिर नहीं रह पाता, कुंजगलियाँ भीं
उसकी राह तकती हैं, वृक्ष जिनके तने की टेक लगाकर वह खड़ा होता है, या बैठता है,
उसके लिए सदा छाया करने को तत्पर रहते हैं, उनमें हर ऋतु में पुष्प खिलने को आतुर
रहते हैं. युगों-युगों में ऐसा सुहृद धरा पर आता है, जिसके जाने के हजारों वर्ष
बाद भी वह जन-जन के मन-प्राण को मुग्ध करने की क्षमता रखता है. ऐसे कृष्ण का
जन्मदिवस आने वाला है. हर्ष और उल्लास के साथ हम उसे याद करें और भगवद् गीता में
दिए उसके उपदेशों को जीवन में धारण करें.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सबकुछ बनावटी लगता है “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
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