Saturday, December 7, 2013

तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो


हम जिसका चिंतन करते हैं वैसे ही हो जाते हैं. यदि हम कृष्ण का चिन्तन करते हैं तो धीरे-धीरे उसके गुणों को धारण करने लगते हैं. कृष्ण को सात्विक भोजन पसंद था, पसंद है और पसंद रहेगा, उसे संगीत से प्रेम है, वह निडर है, प्रेमी है, नटखट है, विनोदी है, वह सुन्दरता का सिरमौर है. वह क्या नहीं है, ऐसा होने पर भी हमसे दूर नहीं जाता, निकटस्थ है, भक्तों के हृदय में स्वयं को प्रकट कर देता है. वह आत्मा का सखा है, गुणात्मक रूप से आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं. मन व बुद्धि सीमित हैं जो उसे नहीं जान पाते, लेकिन मन द्वारा किया गया उसका चिन्तन मन को शुद्ध बनाता है, शुद्ध मन में आत्मा की झलक मिलती है. तब मानव यह जानने लगता है जो दिख रहा है वह अस्थिर है, जो अदृश्य है वही वास्तविक है. आत्मा की ही सत्ता से मन व बुद्धि कार्य कर रहे हैं, प्रमुख वही है और यह आत्मा, परमात्मा का अंश है सो सभी कुछ उसी का ही हुआ ! 


6 comments:

  1. sahi kaha jaisi soch hoti hai vaise hi ham ban jate hain ...

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  2. शुद्ध मन में आत्मा की झलक मिलती है. तब मानव यह जानने लगता है जो दिख रहा है वह अस्थिर है, जो अदृश्य है वही वास्तविक है...

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  3. कृष्णभावनामृत (कृष्णभावनाभावित )ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है मानव पर। कृष्ण तो भक्तों का रथ भी हाँकते हैं।

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  4. शुद्ध मन में आत्मा की झलक मिलती है.

    saatwik wachan

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  5. उपासना जी, वीरू भाई, रमाकांत जी व राहुल जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. सच कहा आपने हमारी सोच हमारे आगे आगे चलती है .....

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