ज्ञान मन को मुक्त कर देता है. आत्मा का
ज्ञान पाकर ही बुद्धि वास्तव में बुद्धि कहलाने की अधिकारिणी है. उसके पहले मन तो पाश
में बंधा होता है, बुद्धि भी एक अधीनता का जीवन जीती है. मन की आधीन, इन्द्रियों
की आधीन, धन, प्रसिद्धि, प्रशंसा की आधीन, मोह, क्रोध, अहंकार की आधीन तथा और भी न जाने मन की कई सुप्त
प्रवृत्तियों की अधीनता उसे स्वीकारनी पड़ती है. किन्तु आत्मा का ज्ञान होने के बाद
जैसे कोई परदा उठ जाता है. मन, बुद्धि स्वयं को कितना हल्का महसूस करते हैं.
आत्म ज्ञान के बाद जानने को कुछ बचता ही क्या है...बहुत सारगर्भित चिंतन..
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