मानव देह
परमात्मा का मन्दिर है, देह में ही परमात्मा का अनुभव सम्भव है. मन मनुष्य निर्मित
है, देह नैसर्गिक है. मन बंटा है, अशान्ति मन के कारण है. मन समाज का दिया है, तन प्रकृति
का है, हर पल परमात्मा से जुड़ा है, प्राण जो इस देह को चला रहे है, पंच तत्व जिनमें
परमात्मा ओतप्रोत है, जिनके स्पर्श से भीतर पुलक भर जाती है, इस देह द्वारा ही
अनुभव में आते हैं. इसीलिए संतजन कहते हैं स्वयं को जानो, स्वयं के पार ही वह छुपा
है जिसे जानकर फिर कुछ जानने को शेष नहीं रहता.
सचमुच , हमारा यह शरीर भगवान का मन्दिर ही तो है , हमें यह बात हमेशा याद रखना चाहिए ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार शकुंतला जी
ReplyDelete