Sunday, May 13, 2018

कर्मशील हो जीवन अपना


१४ मई २०१८ 
सृष्टि में हर पल कुछ न कुछ घट रहा है, लगता है जगत नियंता एक पल भी विश्राम नहीं करता. भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं, मुझे कुछ भी पाने अथवा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं अनवरत क्रियाशील हूँ. पंछी भी दिन भर कुछ न कुछ करते ही रहते हैं, और तभी वह रात होते ही चैन की नींद सो जाते हैं. मानव ने जो अपनी रातों की नींद गंवा दी है क्या वह शारीरिक अकर्मण्यता के कारण तो नहीं है, आजकल परिवार छोटे हो गये हैं, सुख-सुविधा और साधन सम्पन्न परिवारों में काम करने के लिए भी कोई न कोई सहायक या सहायिका होती ही है. शेष बचा काम आधुनिक उपकरणों से हो जाता है, अब ज्यादा समय बीतता है टीवी, कम्प्यूटर के सामने या मोबाइल पर, देह को अति विश्राम मिलने से वह स्थूल हो जाती है और फिर अस्वस्थ. शारीरिक थकान नहीं हुई तो निद्रा दूर ही रहेगी. निद्रा में थका हुआ तन ही तो विश्राम पाता है. मन तो तब भी सक्रिय रहता है. देह की स्थिरता ही मन को भी एकाग्र करने में सहायक होती है और तभी समाधि जैसी गहन निद्रा का अनुभव कोई कर सकता है, जैसे शिशु सोते हैं या कोई थका हुआ कृषक या मजदूर. घर के कामों में मशीनों के बढ़ते चलन की वजह से हाथ-पैर के जोड़ों में गति नहीं होती और यदि कोई नियमित व्यायाम न करे तो उनमें पीड़ा होने लगती है. इससे बचने का उपाय है कि प्रतिदिन कुछ न कुछ शारीरिक श्रम किया जाये. कुछ खेती करें, गमलों में ही सब्जियां उगायें. मोहल्ले में जाकर सबको साथ लेकर योग की कक्षा चलायें या स्वच्छता का बीड़ा उठायें. समाज को आगे ले जाने का बीड़ा श्रमशील व्यक्तियों ने ही उठाया है. जीवन की अंतिम श्वास तक जो सक्रिय रह सकेगा वही मृत्यु का स्वागत हँसते-हँसते कर सकता है.  

9 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 15/05/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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    1. बहुत बहुत आभार कुलदीप जी !

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  3. कर्म प्रधान आत्म चिंतन देती सार्थक रचना।

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    1. स्वागत व आभार कुसुम जी !

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  4. श्रम शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का हो सकता है।
    मानसिक श्रम में शरीर आराम पायेगालेकिं फिर भी उसे थकान महसूस होगी और वह चैन से सो पायेगा।
    स्वस्थ शरीर के लिए कर्म तो करना पड़ेगा।
    वरना शैतान और हम में कोई अंतर ना रह जायेगा।

    सुंदर आलेख अनिता जी

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    1. स्वागत व आभार रोहित जी !

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    1. स्वागत व आभार रश्मि जी !

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