Wednesday, October 13, 2021

जीवन ही जब बने साधना

साधना के द्वारा जब जीवन से जड़ता और प्रमाद चले जाते हैं, तभी किसी न किसी नवीन  सृजन का कार्य आरम्भ होता है। मन से परिग्रह का उन्माद भी खो जाता है और सहज संतोष अनुभव होता है। भय तभी होता है जब कुछ बचाए रखने की कामना रहे, इसलिए अपरिग्रह सधते ही अभय का जन्म साधक के जीवन में होता है। ऐसा व्यक्ति ही निस्वार्थ  प्रेम दे सकता है। उसके मन में कृतज्ञता की भावना पनपती है और हर उपलब्धि को वह ईश्वर का अनुग्रह मानकर स्वीकार करता है।अब  राग-द्वेष की आँच नहीं जलाती अपितु निरंतर एक सजगता बनी रहती है। उसके कर्म अब बंधन का कारण नहीं बनते बल्कि  मन को शुद्ध करने के हेतु बनते हैं। चित्तशुद्धि होते-होते  साधक एक न एक दिन समाधि के परम आनंद  को प्राप्त होता है। 


1 comment:

  1. What an Article Sir! I am impressed with your content. I wish to be like you. After your article, I have installed Grammarly in my Chrome Browser and it is very nice.
    unique manufacturing business ideas in india
    New business ideas in rajasthan in hindi
    blog seo
    business ideas
    hindi tech

    ReplyDelete