Wednesday, November 9, 2022

बन जाए जीवन जब उत्सव

जीवन एक प्रसाद की तरह हमें मिला है।हमारा तन, पाँच इंद्रियाँ, मन तथा बुद्धि इस प्रसाद को ग्रहण करने में सहायक बन सकते हैं, यदि हम उनके प्रति सम्मान का भाव रखें। अपने शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जब हम सृष्टि कर्ता  के प्रति कृतज्ञता का अनुभव करते हैं तब हमारे सम्मुख एक नया आयाम खुलने लगता है। मन उसे जान नहीं सकता पर वह स्वयं मन को अपना आभास कराता है। जब जगत और अपने शरीर के प्रति हमारे भीतर सम्मान की भावना होती है तो अहंकार अपने शुद्ध रूप में प्रकट होता है। ऐसी स्थिति में हम स्वयं को जगत से पृथक मानकर स्वार्थ पूर्ति में लिप्त नहीं रहते बल्कि जगत का अंश मानकर स्वयं को उन कार्यों में लीन पाते हैं जो अपने साथ-साथ सबके लिए सुख का कारण बनें। छोटी-छोटी बातें अब व्यथित नहीं करतीं, एक गहन शांति का घेरा सदा ही चारों ओर बना रहता है और हम उस आनंद का अनुभव करते हैं जिसका कोई बाहरी कारण दिखायी नहीं देता। जीवन हमारे लिए एक अनवरत चलने वाला उत्सव बन जाता है। 


4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को   "भारतमाता की जय बोलो"  (चर्चा अंक 4609)     पर भी होगी।
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    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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    1. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

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  2. बहुत ही सार्थक रचना ।

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    1. स्वागत व आभार ओंकार जी !

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