ध्यान का फल ज्ञान है, कोई जगत में लगाये या परमात्मा में। संसार में जिसका ज्ञान मिल जाता है, वहाँ से ध्यान हट जाता है क्योंकि ध्यान ज्ञान बन गया है। पदार्थ में जोड़ा ध्यान व्याकुलता को जन्म देता है, क्योंकि जब एक पदार्थ का ज्ञान मिल जाता है, दूसरे को जानने की चाह जग जाती है, पर इतने बड़े जगत में कितना कुछ अनजाना है ।अपनी इस व्याकुलता को भूलने के लिए मानव क्या-क्या नहीं करता? वह अपने आप को इतर कामों में लगाकर उस प्रश्न से बचना चाहता है; जो उसे व्याकुल कर रहा है। वह जगत को दोनों हाथों से बटोर कर अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहता है पर वह भी नहीं कर पाता; क्योंकि जगत में सभी कुछ नश्वर है। वह तब भी जगता नहीं बल्कि नींद के उपाय किये जाता है। जब तक कोई मांग है तब तक भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं किया जा सकता। संसार भीतर का प्रतिबिम्ब है। परमात्मा सदा रहस्य बना रहता है, वह हर कदम पर आश्चर्य उत्पन्न होने की स्थिति पैदा कर देता है! यदि कोई परमात्मा में ध्यान लगाये तो वह ज्ञान होने के बाद भी नहीं हटता क्योंकि परमात्मा का ज्ञान कभी पूरा नहीं होता।
सटीक
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
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