Sunday, September 16, 2012

कहते हैं किसको मुक्ति


अगस्त २००३ 
आजादी का अर्थ क्या है, आजादी यानि हमारे मन की आजादी, कोई बंधन नहीं, पूर्ण मुक्त, जीवन मुक्त, न इच्छाओं का बंधन न कामनाओं का, न लोभ का, न मोह का न ईर्ष्या का न अहंकार का. हम हैं ही क्या इस विशाल ब्रह्मांड के सम्मुख और हममें या अन्य किसी में अंतर ही क्या है तो हम किसका अहंकार करें और किससे  ईर्ष्या करें. यह जगत हमें दे ही क्या सकता है जो हमारे पास पहले से ही नहीं है, तो हमें लोभ भी क्यों हो. कौन यहाँ पूर्ण है तो क्रोध किस पर करें. जब हम ही अपूर्ण हैं तो हमें क्या अधिकार है कि क्रोध करें. यही सारे विकार ही तो हैं जो हमें गुलाम बनाते हैं. सद्गुरु हमें आजाद करते हैं, सारे बंधनों से मुक्ति दिलाते हैं. हम बिन पंखों के मुक्त गगन में उड़ने लगते हैं. हम उस देश के वासी हैं जहां रोग नहीं, शोक नहीं, आनंद ही आनंद है. जहां करुणा है, प्रेम है, जहां अपनत्व है, जहां अद्वैत है, जो ब्रह्म का देश है, जो कृष्ण का वृन्दावन है, गोकुल है, जहां प्रेम की वंशी बजती है. जहां विकारों के असुरों का कृष्ण नाश कर देते हैं. जहां अंतर में मन की राधा का मन के कृष्ण से निरंतर मिलन होता है. ऐसी मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है जिसे एक बार पाने के बाद पुनः हमें गुलाम नहीं बनना है. मुक्ति का एक बार स्वाद जो ले ले फिर उसे सोने की जंजीरें भी बांध नहीं पाएंगी वह तो अमृत पान कर चुका है फिर क्यों पोखर के पास जायेगा. संत तभी हमें साधना, सेवा, सत्संग और स्वाध्याय के मार्ग पर चलने का परामर्श देते हैं, यही पथ मुक्ति का पथ है.

3 comments:

  1. तन पिंजर में कैद सही , भीतर मन आज़ाद है !
    मुक्ति वही है !

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  2. बहुत सही कहा है आपने..मन की मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है..

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  3. बहुत सुन्दर और ज्ञानमय आलेख।

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