Tuesday, December 3, 2013

पार हुआ जो तीन गुणों से

अप्रैल २००५ 
ईश्वर अकारण दयालु है, परम मित्र है, परम स्नेही है, सुह्रद है, हितैषी है, अपना है और सदा हमारे साथ है. इतना सब होते हुए भी मानव दुखी है, यह कैसा विरोधाभास है, कैसे विडम्बना है ? हम ईश्वर की तथाकथित भक्ति तो करते हैं पर उससे दूर-दूर ही रहते हैं उससे डरते हैं, या तो अपने आप से डरते हैं या ईश्वर इतना शुद्ध है कि हमारे भीतर की अशुद्धता उसके निकट  जाते ही स्पष्ट दिखाई देने लगती है, या हम ईश्वर से दूर-दूर का ही नाता रखना चाहते हैं, हम डरते हैं कि प्रभु हमसे कुछ छीन न ले, हम निरे बच्चों का सा व्यवहार करते हैं उसके सम्मुख ! हम नाटक करते हैं, स्वयं को धोखा देते हैं, क्योंकि उसे तो धोखा दिया ही नहीं जा सकता. कृष्ण कहते हैं कि प्रकृति अपने गुणों के अनुसार ही वर्तती है और गुणों के वशीभूत हुए प्राणी भिन्न-भिन्न व्यवहार करते हैं, और यह गुण उन्हें कर्मों के अनुसार मिलते हैं, हमारा अधिकार कर्म करने तक ही है. पूर्व आदतों के अनुसार ही यदि कर्म करते रहे तो जीवन पूर्ववत ही बना रहेगा, ध्यान से हम संस्कारों को बदल सकते हैं जिनसे सात्विक स्वभाव को प्रप्त होंगे. गुणों को बदलना हमारे हाथ है यह जानने के बाद कौन है जो प्रकृति के वशीभूत होकर कर्म करेगा, सजग व्यक्ति अपना निर्माता स्वयं होता है.


2 comments:

  1. हम ही स्वयं के निर्माता हैं। ।कितनी सार्थक बात कही अनीता जी !!

    ReplyDelete
  2. हमारा अधिकार कर्म करने तक ही है.....

    ReplyDelete