Wednesday, May 21, 2014

सत्य ही मंजिल वही हो मार्ग


संशय रूपी पक्षी के दो पंख होते हैं, पहला दुष्ट तर्क दूसरा क्लिष्ट तर्क. पहले तर्क से दूसरों को कष्ट होता है, तो दूसरे प्रकार के तर्क से हम स्वयं ही फंस जाते हैं. निर्दोष चित्त का प्रसाद है अतर्क, भक्ति पूर्ण हो तो तर्क के लिए कोई जगह ही नहीं. भक्ति का अर्थ है सत्य के प्रति समर्पित होना, जो सही है उसको ही चाहना, तब जीवन में आगे बढ़ने के मार्ग अपने आप खुलते जाते हैं. किसी फल की आकांक्षा के बिना कृतज्ञता स्वरूप तब जीवन यात्रा की जाती है तो बिना किसी बाधा के वह फलीभूत होती है. 

7 comments:

  1. बहुत सुंदर पोस्ट.
    सत्य के प्रति समर्पित और जीवन प्रति कृतग्य होना ही---राह और मंजिल बन जाते हैं.

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  2. सुखद, सरल और सुंदर लेख आभार।

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  3. भक्ति के आगे तर्क नहीं टिक पाटा ...

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  4. " सत्यमेव जयते नानृतम् ।"

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  5. राजेन्द्र जी, अभिषेक जी, शकुंतला जी, दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. बहुत बहुत आभार !

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