Wednesday, December 10, 2014

तुम्हीं हो बन्धु सखा तुम्हीं हो

जुलाई २००७ 
परमात्मा के नाम के सिवा सभी कुछ नश्वर है, इसका बोध होते ही सारा दृश्य बदल जाता है. अस्तित्त्व मुखर हो जाता है. ऐसा बोध आत्मा की गहराई से उपजता है. भीतर जो सत्य, आनंद का स्रोत है वहाँ से. जो चमत्कार कर सकता है, अभाव व प्रभाव से निकाल कर वह हमें स्वभाव में लाता है. सहज ही अकर्ता भाव सधने लगता है. परमात्मा हमारा सुहृदय है, सखा है, आत्मीय है, मीत है और ऐसा हितैषी जो कभी राह से भटकने नहीं देता. उससे विमुखता ही असजगता है. असजग होकर हम अपने स्रोत से दूर हो जाते हैं, आत्मा के पद से हट जाते हैं. ऐसा होते ही दुःख हमें घेर लेता है.

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