९ सितम्बर २०१७
मन का स्वभाव है अभाव में
जीना, आत्मा तृप्ति और संतोष चाहती है. मन की दृष्टि सदा कमियों की तरफ ही जाती
है, आत्मा अपने आप में इतनी आनंदित होती है कि कमियां उसे नजर ही नहीं आतीं. मन को
सदा नयेपन की तलाश है, आत्मा चिरंतन है. मन सदा भय में जीता है, आत्मा में होना ही
अभय का दूसरा नाम है. मन मिटने से डरता है, आत्मा कुछ न होने में ही अपना होना
जानती है. मन दुःख बनाता है, न हो तो आशंकित होता है, आत्मा किसी भी परिस्थिति में
अडोल बनी रह सकती है. मन सदा अतीत अथवा भविष्य में जीता है, कभी अतीत की भूलों पर
पछताता है और कभी भविष्य में होने वाले दुखों से घबराता है. आत्मा के लिए हर क्षण अपार
सम्भावना लिए आता है. वर्तमान में रहना ही आत्मा में होना है.
कितना सटीक कहा है
ReplyDeleteस्वागत व आभार वाणी जी !
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