Sunday, May 13, 2018

गुरू माता-पिता, गुरू बंधु सखा


१३ मई २०१८ 
आज मातृ दिवस है और साथ ही भारत के एक महान संत श्री श्री रविशंकर जी का जन्मदिन भी, संयोग से इस वर्ष ये दोनों उत्सव एक साथ मनाये जा रहे हैं. किसी भी व्यक्ति के जीवन में माँ और गुरू दोनों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. कहते हैं भगवान हर जगह नहीं पहुँच सकते इसलिए उन्होंने माँ की रचना की, अर्थात माँ भगवान का ही एक रूप है. वह ब्रह्मा की तरह संतति का सृजन करती है, विष्णु की तरह पालना करती है और शिव की तरह बालक की कमियों का विनाश भी करती है. शिशु का मन कोरी स्लेट की तरह होता है, माँ के पोषण में उसे केवल आहार ही नहीं मिलता, मिलती है एक पूरी परंपरा, संस्कारों की एक श्रंखला. जितने धैर्य और प्रेम से एक माँ अपने शिशु का पालन करती है, उतना ही प्रभावशाली उसका व्यक्तित्त्व बनता है. गुरू भी माँ की तरह होता है, प्रेमपूर्ण और बिना किसी प्रत्याशा के अपने स्नेह लुटाने वाला. गुरु को भी ब्रह्मा, विष्णु, महेश का रूप कहा जाता है. वह शिष्य को द्विज बनाता है अर्थात उसका दूसरा जन्म गुरू के द्वारा होता है. शिष्य के मन के विकारों को दूर करने का उपाय बताकर गुरू उसे आत्मज्ञान प्रदान करता है. स्वयं का ज्ञान पाकर ही वह बन्धनों से स्वयं को मुक्त करता है और परमात्मा के आनंद का अनुभव करता है.  

4 comments:

  1. मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनाओं सहित , आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २०५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...

    " जिसको नहीं देखा हमने कभी - 2050वीं ब्लॉग-बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. बहुत बहुत आभार सलिल जी !

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  2. नमन गुरु और माँ दोनो को। दोनो एक में समाये हुए भी।

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    1. स्वागत व आभर सुशील जी !

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