Wednesday, November 11, 2020

जीवन इक वरदान बने जब

 सत्य को परिभाषित करना कुछ ऐसा ही है जैसे हवा को मुट्ठी में कैद करना. जगत में जो भी शुभ है, जो भी शुभता को बढ़ाने वाला है, शांति और आनंद को प्रदान करता है, वह सत्य है, शिव है, सुंदर है, वही परमात्मा है.  एक अनंत शक्ति जो सभी को अपना मानती है, जिसके मन में करुणा और प्रेम का सागर है, उसको अनुभव करने का अर्थ है स्वयं भी सब जगह उसी को देखना. देह मानकर हम स्वयं को सीमित समझते हैं, मन के रूप में फ़ैल जाते हैं, आत्मा के रूप में हमारे सिवा कोई दूसरा नहीं है, ऐसा अनुभव किया जा सकता है. ऐसे परमात्मा को जीवन में अनुभव करना हो तो आत्मा के निज धर्म का पालन करना होगा. प्रार्थना के हजार शब्दों को सुनने या याद करने से वह सुख नहीं मिल सकता जो शुभता बढ़ाने वाला एक छोटा सा कृत्य दे सकता है. जब स्वार्थ बुद्धि हट जाती है, मन स्वयं को कर्ता मानना छोड़ देता है, तब ही भीतर हल्कापन महसूस होता है और जीवन परमात्मा से मिले एक उपहार की तरह प्रतीत होता है.


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत सार्थक सन्देश।
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।

    ReplyDelete