Sunday, April 18, 2021

'है' को जो मन स्वीकार करे

 जो ‘है’ उस हम चाहते नहीं. क्योंकि वह है ही, जो ‘नहीं’ है उसे हम चाहते हैं और वह चाह हमें अशुद्ध करती है। कोई भी इच्छा हमें अपने स्वरूप से नीचे लाती है। तो क्या हम इच्छा करना ही छोड़ दें, नहीं, यदि छोड़ना ही है तो देहाभिमान को छोड़ना होगा। हर इच्छा देह से आरंभ होती है। जीव भाव छोड़ना होगा, यश की इच्छा जीव से जुड़ी होती है। अहंकार को छोड़ना होगा, कर्ता भाव अहंकार से जुड़ा है। मोक्ष कुछ करके हासिल नहीं किया जा सकता। यह एक भावदशा का नाम है, ऐसी भाव दशा का, जिसमें मन पूर्णत: रिक्त होता है, भूत या भविष्य का कोई विचार उसे प्रभावित नहीं करता, कोई चाह उसे अशुद्ध नहीं करती। मन जो निपट वर्तमान में है और स्वयं के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहता, वह मुक्त ही है।  


3 comments:

  1. अहंकार को छोड़ना होगा, कर्ता भाव अहंकार से जुड़ा है। मोक्ष कुछ करके हासिल नहीं किया जा सकता। यह एक भावदशा का नाम है---बहुत खूब

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