क्या आपने कभी सोचा है, मन में शून्य है अथवा शून्य में मन है ? यदि कोई कुएँ से पानी भर रहा हो और सोचे कि घट में जल है या जल में घट ? इसी तरह दिल में रब है या रब में दिल है ? हम देह में रहते हैं या देह हममें ? भक्त भगवान से पूछे, तुझमें मैं हूँ या तू मुझमें है ? स्वर्ण में कंगन है या कंगन में स्वर्ण ? वस्त्र में धागा है या धागे में वस्त्र ? और तो और, क्या सवाल में जवाब है या जवाब में सवाल छुपा है ? धरती पर जल है या जल में ही धरती है ? इन सारे सवालों के उत्तर में मात्र एक शब्द मिलेगा !
वह है अनंत !
मन सीमित शून्य अनंत ज्यों,
तन सीमित मन असीम है !
दिल छोटा सा रब अपार है,
रूप लघु अरूप अनंत !
उस अनंत शून्य में थिरता
वहीं छिपी है मन की समता !
वहीं जागरण, वहीं समाधि
वहीं ठहर परमपद मिलता !
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५-०३ -२०२२ ) को
'गरूर में कुछ ज्यादा ही मगरूर हूँ'(चर्चा-अंक-४३८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत गहरी बात बहुत सरल शब्दों में !
सुंदर रचना
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुंदर गहन भाव ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
Deleteबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
Deleteगहन विचारोक्ति,
ReplyDeleteकवि भूषण की पंक्तियां स्मरण हो आई।
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है
नारी ही कि सारी है कि सारी ही कि नारी है।
मन में शून्य है अथवा शून्य में मन है ?
शून्य में ही मन है या मन ही शून्य है।
घट में जल है या जल में घट ?
जल का ही घट है या घट का ही जल है।
दिल में रब है या रब में दिल है ?
रब है दिल का या दिल ही रब है।
हम देह में रहते हैं या देह हममें ?
हम हैं देह के या देह ही हम हैं।
तुझमें मैं हूँ या तू मुझमें है ?
मैं ही तुम में या तुम में मैं हूं।
स्वर्ण में कंगन है या कंगन में स्वर्ण ?
स्वर्ण ही का कंगन है या कंगन का है स्वर्ण।
वस्त्र में धागा है या धागे में वस्त्र ?
वस्त्र का ही धागा है या धागे का ही है वस्त्र।
सवाल में जवाब है या जवाब में सवाल छुपा है ?
सवाल ही जवाब है, या जवाब में है सवाल।
धरती पर जल है या जल में ही धरती है ?
जल की ही धरती है या धरती का है जल।
वाह अद्भुत।
कुसुम जी, आपने इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया लिखकर रचना के मर्म तक जाकर उसे को नया आयाम दे दिया है, बहुत बहुत आभार!
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