Wednesday, November 20, 2013

कितना सुंदर पथ है उसका

अप्रैल २००५ 
भक्त वही है जिसका मन ईश्वरीय भावों से लबालब भरा हुआ है, भीतर एक प्रकाश फैला है जो उसके अस्तित्त्व के कण-कण को भिगो रहा है. शास्त्रों में लिखी बातें उसके लिए सत्य सिद्द हो गयी हैं. आकाश व्यापक है पर आकाश भी भगवान में है, अगर कुछ पल भी उस भगवद् तत्व में कोई टिक जाये तो कभी विषाद नहीं होता. सन्त कहते हैं, स्वस्थ देह, पावन भाव और शुद्ध बुद्धि यह तीन तो साधना के अंग हैं और चौथी अवस्था 'साध्य' है. उसका अनुभव होने पर सुख-दुःख का असर नहीं होता, मन निर्लिप्त हो जाता है, हर परिस्थिति में समता बनाये रखना सम्भव हो जाता है. अपनी स्मृति को बनाये रख सकते हैं. इस पथ पर दूर से ही साध्य की सुगंध मिलने लगती है. उस स्थिति की कल्पना ही कितनी सुखद है, जब हमें  भी वह अनुभव होगा, जो नानक का अनुभव है मीरा का अनुभव है. कई बार हमें भी उसकी झलक मिली है पर अभी बहुत दूर जाना है. मन के दर्पण को मांजना है, पात्रता हासिल करनी है.

4 comments:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति 22-11-2013 चर्चा मंच पर ।।

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  2. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का शुभ लेखन का।

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  3. सुन्दर विचार कणिकाएं।

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  4. राजेन्द्र जी, व वीरू भाई स्वागत व आभार !

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