Sunday, February 2, 2014

मुक्त रहें जो कर्तापन से

जुलाई २००५ 
हमारा सारा जीवन कर्मों की एक श्रृंखला ही तो है. मन जब निज केंद्र में रहना सीख जाता है, स्वयं में स्थित रहकर परमात्मा को पूर्ण समर्पित अनुभव करता है, तब कर्त्ता भाव से मुक्त होता है और तब वह भी उसी तरह सम्पूर्ण कार्यों को होते हुए देखता है जैसे कोई अन्य व्यक्ति. जब हम कर्तापन के भाव से दब जाते हैं तभी दुःख के भोक्ता बनते हैं. गुण-गुणों में बरत रहे हैं यह जानकर जब हम अलिप्त रहते हैं हमारे भीतर आनन्द की अजस्र धारा निरंतर बहती रहती है. एक क्षण का भी व्यवधान उसमें हुआ तो साधक को सहन नहीं होता. 

3 comments:

  1. साधना की आदत बन जाये तो जीवन सफल है ...!!बहुत सुंदर बात अनीता जी .

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  2. हर ओर समाया तू ही भगवन ! बन जा तू ही पथ-पाथेय ।

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  3. अनुपमा जी व शकुंतला जी आप दोनों का स्वागत व आभार !

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