फरवरी २००६
ज्ञान
में स्थित रहकर जीना ही वास्तविक जीवन है. ज्ञान का अर्थ है राग-द्वेष से मुक्त
होकर जीना, जहां राग होगा वहाँ द्वेष भी होगा ही, जहाँ मान मीठा लगेगा अपमान कड़वा
लगेगा ही. राग से छुटकारा पाने का उपाय यही है कि हम किसी की गलती कभी न देखें,
जब तक हमें दोष दिखाई देते हैं तब तक प्रेम नहीं पनपा है ऐसा ही मानना चाहिए. ज्ञान
में जीने का अर्थ यह भी है कि स्वयं को शुद्धात्मा देखें, व अन्यों को भी वैसा ही
देखें. देह, मन आदि जड़ हैं, इन्हीं को नाम मिला है, जो हमारा नाम है वह वास्तव में
इन्हीं का है, तो जो भी अनुभव होता है वह उसी को होता है, स्वयं उससे पृथक है, यह
भाव दृढ़तर करते जाना है. तब कर्मों का बंधन नहीं होगा. कितना अद्भुत है यह ज्ञान
जो सारे दुखों से मुक्त करता है, हमारे भीतर उस आनन्दमय राज्य का सृजन करता है,
जिसकी कामना अनंत काल से मानव करता आया है.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_7.html
ReplyDeleteआभार !
Deleteसही रास्ता पर कुछ कुछ कठिन भी :)
ReplyDeleteजो मात्र सरल है वह कहीं भी नहीं पहुंचाता..जो सही है वह कठिन लगने पर भी मंजिल पर ले जाता है
Delete
ReplyDeleteसचमुच सुंदर पथ है ज्ञान का !
आभार आपका ज्ञान के मोती लुटाने के लिए...
स्वागत है आपका..
Deleteहे परमेश्वर सम्मुख आओ , बस एक झलक दिखला जाओ ।
ReplyDeleteपरमात्मा तो हर पल झलक दिखा ही रहा है...
Deleteज्ञान सच्चे अर्थों वही है जो मन को हर स्थिति में शांत रखने में सहायक हो ... सुंदर लेख
ReplyDelete