Tuesday, September 2, 2014

यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे

फरवरी २००७ 
यह सारा संसार एक विशाल कम्प्यूटर की तरह है, हम इसमें जो भी फीड करते हैं, हमें वही वापस मिलता है. सभी के प्रति जब हम सद्भावना रखेंगे तो हमें वही वापस मिलेगी  और यदि कोई दुःख हमारे जीवन में आता भी है तो वह हमारे ही पूर्व कर्मों का फल है. यह समष्टि प्रेम, शांति, आनन्द तथा ज्ञान स्वरूप है. ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे’ के अनुसार जो समष्टि में है वही व्यष्टि में है. साधक के लिए संतों के वचन भीतर तक शीतलता पहुँचाने वाले हैं, जिन्हें सुनकर क्षण में वह अपने स्वरूप का अनुभव करता है.



2 comments:

  1. बहुत सुन्दर है -दुःख देकर माया हमारी मदद करती है ईश्वर को याद करना हम भूल गए थे याद दिलाती है।

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  2. स्वागत व आभार, वीरू भाई !

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