Thursday, September 4, 2014

मुक्त हुआ जो वही सुखी

फरवरी २००७ 
जो चेतना स्वाधीन है, वह शांत है. जो चेतना पराधीन है वह बेचैन होती है. चाह हमें पराधीन बनाती है और जो काम हम बिना चाह के करते हैं वह भी पराधीन चेतना की निशानी है. अहंकार के लिए भी दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है, आत्मसम्मान के लिए कोई अन्य नहीं चाहिए. भीतर से जो संतोष प्रकट होता है, रंजन की शक्ति होती है, वही स्वाधीन चेतना से झरती है.  


7 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (05.09.2014) को "शिक्षक दिवस" (चर्चा अंक-1727)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. डायरी के पन्नों को जब भी पढता हूँ एक कमाल की सीख मिलती है :)

    स्वागत है मेरी नवीनतम कविता पर  रंगरूट

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  3. सुन्दर सटीक अनुकरणीय सूक्त शुक्रिया टिप्पणियों के लिए।

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  4. वाकई। मगर मुक्त होने पर सुख मिलेगा क्या?

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    1. मुक्त होकर देखना पड़ेगा..

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  5. राजेन्द्र जी, शास्त्री जी, वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार !

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  6. बहुत सुंदर--सत्य का उदघोष

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