Wednesday, June 17, 2015

मस्त हुआ जो वही पा गया

जनवरी २०१० 
अभ्यास और वैराग्य ये दो पंख हैं, जिनके सहारे साधक अध्यात्म के आकाश में उड़ता है. अभ्यास समय सापेक्ष है पर वैराग्य समय सापेक्ष नहीं है. परम को प्रेम करें तो संसार से वैराग्य हो जाता है. मन ही तो संसार है, जब मन स्थिर हो जाता है तो वह ज्योति स्तम्भ बन जाता है, तब शरीर हल्का हो जाता है. मस्ती में परम वैराग्य है. वैराग्य से समाधि का अनुभव होता है, समाधि से प्रज्ञा पुष्ट होती है. पूर्णता का अनुभव होता है.    

4 comments:

  1. Replies
    1. स्वागत व आभार उपासना जी

      Delete
  2. सत्य वचन।

    मन भी मौजी है कभी प्रयास से भी स्थिर नहीं होता और कभी -कभी अपने आप ही स्थिर हो जाता है॥

    ReplyDelete
    Replies
    1. जो तित भावे सो भली..

      Delete