९ अगस्त २०१६
यदि
कोई तारों भरे आकाश को देखकर प्रफ्फुलता से नाच सकता है, और सुबह की किरण का
स्पर्श पाकर उसी भांति उठता है जैसे पंछी जगते हैं तो वह अभी भी निसर्ग से जुदा
नहीं हुआ है. शहर की प्रदूषित हवा और कंक्रीट के जंगलों में पला व्यक्ति आज
कुम्हला गया है क्योंकि न तो वहाँ पूर्णिमा का चाँद दिखाई देता है न भोर का उगता
हुआ सूरज..जंगल और गाँव के निकट रहने वाला व्यक्ति अभी भी खिला नजर आता है.
प्रकृति कुछ करती नजर नहीं आती पर वहाँ सब कुछ अपने आप होता है. प्रकृति से जुड़ा
व्यक्ति भी कुछ करता हुआ नहीं लगता, उससे कर्म होते हैं वैसे ही जैसे पेड़ों पर फूल
लगते हैं. तब जीवन अपने आप में पूर्ण नजर आता है.
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