१२ अगस्त २०१६
जब
तक स्वयं की सही पहचान नहीं मिलती, जीवन में एक अधूरापन महसूस होता है. सब कुछ
होते हुए भी एक तलाश जारी रहती है. देह किसी भी क्षण रोगग्रस्त हो सकती है, मृत्यु
को प्राप्त हो सकती है, यह भय भी अनजाने सताता रहता है, शेष सारे भय उसकी की छाया
मात्र हैं. स्वयं की पहचान करना इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी हम इस कार्य को टालते
रहते हैं, इसका कारण शायद यही है कि हमें लगता ही नहीं कि हम स्वयं को नहीं जानते,
तभी हम अक्सर दूसरों से यह कहते हैं, तुम मुझे नहीं जानते. इस जानने में एक बड़ी
भूल यह हो रही है कि जन्म के बाद इस जगत में हमने जो भी हासिल किया है, उसी से हम
स्वयं को आंकते हैं. वृक्ष का जो भाग बाहर दिखाई देता है उसका मूल भीतर छिपा है. इस
जीवन में हमने जो भी पाया अथवा खोया है उसका मूल भीतर है. यदि बाहर को संवारना है
तो मूल से परिचय करना ही होगा.
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