Monday, November 13, 2017

निज भाग्य के निर्माता हम

१३ नवम्बर २०१७ 
हमारा हर छोटा-बड़ा कृत्य मन अथवा इन्द्रियों में स्थित किसी न किसी कामना का ही फल होता है, तथा हर कृत्य एक बीज की भांति भविष्य में स्वयं भी अनेक फल प्रदान करने वाला है. मन, इन्द्रियों द्वारा प्रेरित होता है और आत्मा को मन द्वारा इसका ज्ञान होता है. मन व सूक्ष्म इन्द्रियां स्थूल देह के द्वारा सुख-दुःख का अनुभव करती हैं. इनमें से जो प्रबल है उसी की जीत होती है. यदि जिव्हा को मीठा खाने का राग है और मन उसकी इच्छा की पूर्ति करता है, तो इसका संस्कार मन पर पड़ जाता है. मिठाई खाने में जिस सुख का अनुभव किया उस सुख की स्मृति भी बार-बार खाने से गहरी होती जाती है. इसके द्वारा जो भी हानि शरीर को होगी उसका अनुभव मन को होगा, इन्द्रियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. अगली बार मन यदि सचेत रहा और इन्द्रियों द्वारा लालायित किये जाने पर भी स्वाद के वशीभूत नहीं हुआ तो भविष्य के दुःख से बच जायेगा अन्यथा पूर्व संस्कार के कारण पुनः उस सुख का अनुभव करने के लिए मिष्ठान ग्रहण करने के लिए तत्पर हो जायेगा. 

No comments:

Post a Comment