२१ दिसम्बर २०१७
जीवन और काल, ये दोनों शब्द पर्यायवाची होने चाहिए. जीवन की
धारा प्रतिपल बह रही है और काल का अश्व भी निरंतर गतिमान है. दोनों अपने स्थिर
होने का भ्रम देते हैं, अन्यथा क्यों कोई पत्थरों पर लाखों व्यय करता है और फूलों
की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखता. जीवन की भव्यता को समझे बिना ही हम समय बिताये
जाते हैं. यहाँ हर क्षण में अनंत छिपा है, संत कहते हैं जो मिला ही हुआ है उस पर
तो हम पर्दे डाले जाते हैं और जो मिल ही नहीं सकता उस सुख के लोभ में दिन का चैन और
रातों की नींद गंवाते हैं. योग ही वह सूत्र है जो जीवन और काल को एक कर देता है.
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