२० सितम्बर २०१८
महाभारत के युद्ध में हम
सभी ने अभिमन्यु की कथा पढ़ी या सुनी है. अभिमन्यु चक्रव्यूह के छह द्वारों को भेद
कर उसमें प्रवेश करना तो जानता था किन्तु सातवें को भेदकर उसमें से वापस निकल पाना
उसे नहीं आता था, इसी कारण कौरवों के हाथों उसे मृत्यु प्राप्त हुई. हर मानव की
कथा भी लगभग ऐसी ही है. शिशु जब जन्म लेता है, वह मानो जीवन के चक्रव्यूह में
प्रवेश कर रहा है. जन्मते ही पहला चक्र जो उसे भेदना है वह है प्राण, अब तक वह
स्वयं श्वास नहीं लेता था, पर अब उसके फेफड़े श्वास के लिए आतुर हैं. बच्चे का
प्रथम रुदन इस चक्र के भेदन का प्रतीक है. दूसरा चक्र है देह, पहले उसे भूख के लिए
कुछ करना नहीं था, अब देह में भोजन के लिए पुकार उठती है. तीसरा चक्र है मन, बाल्यावस्था
में ही उसकी पसंद-नापसंद एक ढांचे में ढलने लगती है. चौथा चक्र है बुद्धि, स्कूल,
कालेज में विद्याध्ययन करके उसके इस चक्र का भेदन होता है. पांचवा चक्र है स्मृति,
पूर्वजन्मों की अथवा जन्म से लेकर हर घटना उसके चित्त पर अपनी छाप छोड़ देती है,
जिसे उसे धारण करना है. छठा चक्र है, अहंकार, उसे लगता है वह इस जगत में विशिष्ट
है, उसे अपनी पहचान बनानी है. यहाँ तक हर मानव पहुंच जाता है, और इसके बाद कौरवों
रूपी मृत्यु के पाश उसे घेर लेते हैं. सातवाँ और अंतिम चक्र है आत्मा, जिसे
कोई-कोई ही भेद पाता है. इसे भेद कर ही जीवन के इस चक्रव्यूह से बाहर निकला जा
सकता है.
जीवन के सभी चक्रों के बखूबी समझाया आपने अनीता जी
ReplyDeleteस्वागत व आभार अलकनंदा जी !
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ReplyDeleteबहुत सरलता से समझा दिया ...सातवाँ और अंतिम चक्र है आत्मा, जिसे कोई-कोई ही भेद पाता है. इसे भेद कर ही जीवन के इस चक्रव्यूह से बाहर निकला जा सकता है.
यही बात है समझने की ,याद रखने की.
सही कहा है आपने दीदी, स्वागत व आभार !
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