Saturday, May 23, 2020

दुःख में जो जागना सीखे


जीवन कितने ही रूपों में हमारे सम्मुख आता है. कभी शांत तो कभी रौद्र, कभी सरल तो कभी कठिन. हम उसे किस रूप में ग्रहण करते हैं यह हम पर निर्भर है. जीवन में यदि सब कुछ ठीक चल रहा हो तो हम अपनी ऊर्जा को व्यर्थ ही इधर-उधर के कामों में लगा देते हैं. यदि कोई विपदा आती है तो हम सजग हो जाते हैं और अपना सारा समय और ऊर्जा उस दुःख से बाहर निकलने में लगाते हैं. उस समय जीवन में एक लक्ष्य होता है जीवन धारा एक ओर ही बहती है. आज पूरे विश्व के आगे एक समस्या है, सरकारें सजगतापूर्वक अपने-अपने देशवासियों के लिए नए-नए प्रोजेक्ट आरंभ कर रही हैं. लोग स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे हैं. धन की दौड़ में जो अपने गांव छोड़कर चले गए थे वे घर लौट रहे हैं. परिवार का जो महत्व खोता जा रहा था, अब वापस स्थापित हो रहा है. दुःख की घड़ी में सब एक हो जाते हैं, शायद इसीलिए प्रकृति कभी-कभी क्रुद्ध होती है. मानव अपने पर्यावरण से जुड़े, लोग आपस में जुड़ें, सभी को अपने कर्त्तव्य पालन का बोध हो, इसका भान कराने के लिए ही महामारी जैसी विपदाएं समय-समय पर युगों से आती हैं. जो समर्थ हैं उन्हें सेवा का अवसर मिले और जो संकट ग्रस्त हैं उन्हें अपनी आंतरिक शक्तियों का भान हो. समाज आपस में जुड़े और अकर्मण्यता का जो दानव मानवता को ग्रस रहा था उसका नाश हो. जीवन में एक गहरा परिवर्तन हो, माता-पिता और बच्चों में संवाद हो, पीढ़ियों का अंतर घटे, भोजन में शुद्धता का ध्यान रखा जाये. स्वच्छता का मानदण्ड बढ़े, ये सारे छोटे-छोटे पर महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं जो आज किसी न किसी रूप में प्राप्त हो रहे हैं. 

2 comments: